विदेशों में गोबर की बढ़ती हुई मांग और दाम को जानकार होगी हैरानी, सामने आया चौंकाने वाला कारण।

नई दिल्ली : जितने दम दूध के है अब उतने ही दाम गोबर के भी हो गये है, भारतीय लोग जहाँ अपनी संस्कृति छोड़ रहे है, वहीँ विदेशों में अब इनकी अहमियत बढ़ रही है, गाय के गोबर को आमतौर पर भारत में ज्यादा अहमियत नहीं दी जाती है, क्यूंकि यह यहीं का उत्पाद है, कहते है, जिसके पास जो चीज होती है वो उसकी कद्र नहीं करते। पूजा और धार्मिक कार्यों में इसका उपयोग होता है, लेकिन कोई भी एक उत्पाद के रूप में इसे नहीं देखता है। हालांकि, समय के साथ चीजें बदल रही हैं और अब विदेशों में गोबर की मांग बढ़ रही है। खासकर मुस्लिम देशों में, कुवैत सहित कई अरब देश भारत से गोबर खरीद रहे हैं। खास बात यह है कि गोबर की कीमत 30 से 50 रुपये प्रति किलो है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में गाय के दूध की कीमत 50 रुपये के करीब है।

अरब देशों के कृषि वैज्ञानिकों ने एक रिसर्च के बाद बताया है कि गाय के गोबर का पाउडर इस्तेमाल करने से खजूर की फसल बेहतर होती है। इससे खजूर बड़े होते हैं। उनका स्वाद भी बढ़ता है और उत्पादन भी ज्यादा होता है। इस्लाम में खजूर का महत्व काफी ज्यादा है। त्योहारों के मौके पर खजूर को अलग-अलग तरीके से इस्तेमाल किया जाता है। अरब देशों में खजूर की फसल भी बड़ी मात्रा में होती है। इसी वजह से अरब देश भारत से गोबर खरीद रहे हैं। अरब देशों में अब गोबर का प्रयोग लगातार बढ़ रहा है, वहीँ भारतीय लोग अपनी सेहत से खिलवाड़ करते हुये यूरिया का प्रयोग कर रहे है।

कुछ समय पहले कुवैत ने भारत को 192 मीट्रिक टन गोबर का ऑर्डर दिया था। आने वाले समय में गोबर की मांग बढ़ सकती है। ऐसा होने पर गोबर की कीमतें भी बढ़ जाएंगी।भारत में जानवरों की संख्या काफी ज्यादा है। रिपोर्ट के अनुसार यहां 30 करोड़ मवेशी हैं, जो रोजाना 30 लाख टन गोबर का उत्पादन करते हैं। ऐसे में भारत प्रचुर मात्रा में गोबर का निर्यात करने में सक्षम है। भारत में आवारा पशु भी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। खासकर गायों का दूध कम होने के कारण किसान उन्हें खुला छोड़ रहे हैं, लेकिन गोबर की कीमत मिलने पर किसान इन पशुओं को भी पालने में सक्षम होंगे। इससे भारत के लोगों के रोजगार में भी वृद्धि हो रही है तो वहीँ भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में लाभ मिल रहा है।

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ट्रैक्टर और अन्य उपकरणों के आने के बाद भारत में बैलों की अहमियत कम हुई है, लेकिन गोबर की कीमत मिलने पर बैलों की भी अहमियत बढ़ जाएगी। किसान बछड़ों को आवारा छोड़ने की बजाय पालना शुरू कर देंगे और आवारा पशुओं की समस्या कम हो सकती है। गोबर का इस्तेमाल जैविक खाद बनाने और गोबर गैस के लिए भी होता है। रसायनिक खादों से होने वाले नुकसान के बारे में पता चलने के बाद आम लोग भी जैविक खाद से होने वाले उत्पादों पर जोर दे रहे हैं। इससे भी गोबर की अहमियत बढ़ी है। अरब देशों में सूखे इलाके ज्यादा होने के कारण वहां ज्यादा पशु नहीं पाले जा सकते हैं, लेकिन भारत के हालात पशुपालन के लिए उपयुक्त हैं। अगर आने वाले समय में गोबर की मांग बढ़ती है तो भारतीय किसानों के लिए पशुपालन के मायने भी बदल सकते हैं। सरकार ऐसे कार्यों को भी बढ़ावा देने में लगी हुई है।