नई दिल्ली : विश्व प्रसिद्द उद्योगपति रतन टाटा का निधन हो गया है। उन्होंने 86 साल की उम्र में आखिरी सांस ली। वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे और उनका मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में इलाज चल रहा था। वे भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के दिग्गज कारोबारी थे, जो अब हमारे बीच नहीं हैं। 86 साल की उम्र में बुधवार रात उन्होंने आखिरी सांस ली। रतन टाटा कुछ समय से बीमार चल रहे थे और मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था।
देश के हर घर में टाटा का नमक, दाल या कार कुछ न कुछ तो आपको मिल ही जाएगा। रतन टाटा के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने हमेशा भारत के लोगों की जरूरतों के हिसाब से व्यापार किया। रतन टाटा की तबियत पिछले कुछ दिनों से ठीक नहीं थी। मुंबई के जाने माने ब्रीच कैंडी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। रतन टाटा को लो बीपी की बीमारी थी। जिसकी वजह से उनकी तबियत बिगड़ने लगी थी। हार्ट रोग विशेषज्ञ डॉ. शारुख अस्पी गोलवाला की निगरानी में उनका इलाज चल रहा था।
डॉक्टरों की लाख कोशिशों के बाद भी रतन टाटा की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। उम्र के साथ उभरने वाली समस्याओं ने स्थिति को और मुश्किल बना दिया था। मिली जानकारी के मुताबिक रतन टाटा लो ब्लड प्रेशर की वजह से हाइपोटेंशन से पीड़ित थे। जिसकी वजह से उनके शरीर के कई अंगों ने धीरे-धीरे काम करना बंद कर दिया था।
रतन टाटा के यूं चले जाने से पूरे देश में गम का माहौल है। उनके चाहने वालों को आज वे बहुत याद आ रहे हैं। साथ ही लोगों के मन में अब यह सवाल भी है कि रतन टाटा का अगला उत्तराधिकारी कौन होगा। उनकी 3800 करोड़ रुपये की संपत्ति का वारिस कौन होगा?
कौन होगा वारिस :
रतन टाटा ने कोई शादी नहीं की थी। इसलिए उनकी कोई संतान भी नहीं है। ऐसे में रतन टाटा की संपत्ति का वारिस कौन होगा, इसे लेकर काफी अटकलें लगाई जा रही हैं। इस समय रतन टाटा के सौतेले भाई नोएल टाटा संभावित उत्तराधिकारियों में टॉप पर चल रहे हैं। नोएल टाटा, रतन टाटा के पिता नवल टाटा की दूसरी पत्नी सिमोन से जन्मे हैं। परिवार का हिस्सा होने के कारण भी उत्तराधिकारियों में नोएल टाटा का नाम काफी ज्यादा लिया जा रहा है। नोएल टाटा के तीन बच्चे हैं। ये माया टाटा, नेविल टाटा और लिया टाटा हैं। ये भी रतन टाटा की संपत्ति के संभावित उत्तराधिकारियों में शामिल हैं। ये सभी रतन टाटा की कंपनियों में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां संभाल रहे है।
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नोएल टाटा के तीनों बच्चे इस समय टाटा ग्रुप में अलग-अलग जिम्मेदारियां संभाल रहे हैं। 34 साल की माया टाटा ने टाटा अपॉर्चुनिटीज फंड और टाटा डिजिटल में अपनी भूमिकाएं निभाई हैं। टाटा न्यू ऐप की लॉन्चिंग में उनका काफी योगदान था। 32 साल के नेविल टाटा ट्रेंट लिमिटेड में प्रमुख हाइपरमार्केट चेन स्टार बाजार को लीड कर रहे हैं। वहीं, 39 साल की लिया टाटा, टाटा ग्रुप के हॉस्पिटैलिटी सेक्टर को देख रही हैं। वे ताज होटल्स रिसॉर्ट्स एंड पैलेसेस को संभाल रही हैं। वे इंडियन होटल कंपनी की भी देखरेख करती हैं। ये सभी रतन टाटा के परिवार से है।
पारिवारिक वृक्ष :
टाटा ग्रुप देश का सबसे बड़ा कारोबारी घराना है। यह देश का पहला कारोबारी घराना है, जिसकी कंबाइंड वैल्यूएशन 400 अरब डॉलर को पार कर गई है। टाटा ग्रुप में करीब 100 कंपनियां हैं, जिनमें से 26 कंपनियां स्टॉक एक्सचेंजों पर लिस्ट हैं। टाटा ग्रुप दुनियाभर में 10 लाख से अधिक लोगों को रोजगार देता है। दुनिया के करीब 150 देशों में टाटा ग्रुप के प्रोडक्ट्स उपलब्ध हैं। टाटा ग्रुप की शुरुआत साल 1868 में एक ट्रेडिंग कंपनी के रूप में हुई थी। बता दें कि दिग्गज कारोबारी रतन टाटा अब हमारे बीच नहीं रहे हैं। बुधवार रात उनका निधन हो गया।
यहां से हुई शुरुआत :
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टाटा ग्रुप की फैमिली ट्री को देखें तो, इस परिवार में एक से बढ़कर एक दिग्गज उद्योगपति हुए हैं। टाटा फैमिली की नींव रतन दोराब टाटा से आती है। इनकी दो संतानें थीं। बाई नवाजबाई रतन टाटा और नुसरवानजी रतन टाटा। नुसरवानजी एक पारसी पुजारी थे। उन्होंने ही सबसे पहले बिजनेस में कदम रखा। इनका जीवनकाल 1822 से 1886 तक रहा।
जमशेदजी टाटा :
नुसरवानजी टाटा के 5 संतानें हुईं। इनमें से एक थे दिग्गज कारोबारी जमशेदजी टाटा। ये ही टाटा ग्रुप के फाउंडर हैं। उन्होंने टाटा ग्रुप में स्टील (टाटा स्टील) और होटल (ताज महल) जैसे प्रुमख कारोबारों की नींव रखी। उन्हें भारतीय उद्योग के जनक के रूप में जाना जाता है। इनका जीवनकाल 1839 से 1904 तक रहा।
दोराबजी टाटा :
दोराबजी टाटा, जमशेदजी टाटा के सबसे बड़े बेटे थे। उन्होंने ही जमशेदजी के बाद टाटा ग्रुप का कारोबार संभाला। इनका जीवनकाल 1859 से 1932 के बीच रहा। दोराबजी ने टाटा पावर जैसे कारोबारों की स्थापना में अहम भूमिका निभाई।
रतनजी टाटा :
रतनजी टाटा, जमशेदजी टाटा के छोटे बेटे थे। उनका जीवनकाल 1871 से 1918 तक रहा। उन्होंने टाटा ग्रुप में कपास और वस्त्र उद्योग जैसे कारोबार जोड़े।
जेआरडी टाटा :
इनका पूरा नाम जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा है। इनका जीवनकाल 1904 से 1993 के बीच था। ये रतनजी टाटा और सुजैन ब्रियर के बेटे थे। ये 50 साल से भी ज्यादा समय तक टाटा ग्रुप के चेयरमैन रहे। टाटा एयरलाइंस की स्थापना जेआरडी टाटा ने ही की थी। इस एयरलाइन का नाम आज एयर इंडिया है।
नवल टाटा :
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नवल टाटा का जीवनकाल 1904 से 1989 के बीच रहा। वे रतनजी टाटा के दत्तक पुत्र थे। रतन नवल टाटा और नोएल टाटा उन्हीं के वंशज हैं। रतन नवल टाटा साल 1991 से 2012 तक टाटा ग्रुप के चेयरमैन और 2016-17 में अंतरिम चेयरमैन रहे। नवल टाटा ने जगुआर लैंड रोवर और टेटली जैसे इंटरनेशनल ब्रैंड के अधिग्रहण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वहीं, नोएल टाटा ग्रुप की कंपनियों में अपनी भूमिका निभा रहे हैं। वे टाटा इंटरनेशनल के अध्यक्ष भी हैं। वे टाटा ग्रुप की रिटेल चेन ट्रेंट के चेयरमेन भी रहे हैं।
रतन टाटा :
रतन टाटा का जीवनकाल 1937 से 2024 तक रहा। वे नवल टाटा और सूनी कमिसरिएट के बेटे थे। रतन टाटा का 9 अक्टूबर, 2024 को निधन हो गया है। रतन टाटा ने जेएलआर, टेटली और कोरस जैसे अधिग्रहण करवाए हैं। रतन टाटा भारत के दिग्गज उद्योगपति के रूप में जाने जाते रहेंगे।
नोएल टाटा के तीन बेटे :
इस समय रतन टाटा के सौतेले भाई नोएल टाटा संभावित उत्तराधिकारियों में टॉप पर चल रहे हैं। नोएल टाटा के तीन बच्चे हैं- माया टाटा, नेविल टाटा और लिया टाटा। तीनों ही टाटा ग्रुप में भिन्न-भिन्न कारोबारों को देख रहे हैं।
पारसी होने के बावजदू रतन टाटा का हिंदू रीति-रिवाज से क्यों होगा अंतिम संस्कार :
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देश के मशहूर उद्योगपति रतन टाटा का का अंतिम संस्कार आज शाम 4 बजे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा। रतन टाटा ने 86 साल की उम्र में मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में बुधवार रात साढ़े 11 बजे आखिरी सांस ली। मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में रतन टाटा का इलाज चल रहा था जहां उन्हें सांस लेने में तकलीफ के चलते भर्ती करवाया गया था। रतन टाटा पारसी समुदाय से आते हैं और उनका अंतिम संस्कार पारसी रीति रिवाजों की जगह हिन्दू परंपराओं के अनुसार किया जाएगा। उनके पार्थिव शरीर को शाम 4 बजे मुंबई के वर्ली स्थित इलेक्ट्रिक अग्निदाह में रखा जाएगा। यहां करीब 45 मिनट तक प्रेयर होगी, इसके बाद अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी की जाएगी।
पारसी समुदाय के अंतिम संस्कार का तरीका बिल्कुल अलग :
पारसी समुदाय में अंतिम संस्कार के नियम काफी अलग है। पारसियों में अंतिम संस्कार की परंपरा 3 हजार साल पुरानी हैं। हजारों साल पहले पर्शिया (ईरान) से भारत आए पारसी समुदाय में न तो शव को जलाया जाता है और न ही दफनाया जाता है। पारसी धर्म में मौत के बाद शव को पारंपरिक कब्रिस्तान जिसे टावर ऑफ साइलेंस या दखमा कहते हैं, वहां खुले में गिद्धों को खाने के लिए छोड़ दिया जाता है। गिद्धों का शवों को खाना भी पारसी समुदाय के रिवाज का ही एक हिस्सा है। हालांकि रतन टाटा का अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाजों से किया जाएगा। इससे पहले सितंबर 2022 में टाटा संस के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री का अंतिम संस्कार भी हिंदू रीति रिवाजों से किया गया था। ऐसा इसलिए क्योंकि कोरोना महामारी के समय शवों के अंतिम संस्कार के तरीकों में बदलाव हुए थे। उस दौरान पारसी समुदाय के अंतिम संस्कार के रीति रिवाजों पर रोक लगा दी गई थी।
पारसी समुदाय में कैसे होता है अंतिम संस्कार? :
पारसी समुदाय के व्यक्ति की मौत के बाद शव को आबादी क्षेत्र से दूर बने दखमा यानी टावर ऑफ साइलेंस में ले जाया जाता है। कई जगह यह कोई छोटी पहाड़ी भी हो सकती है। टावर ऑफ साइलेंस में शव को ऊंचाई पर खुले आसमान के नीचे रखा जाता है। इसके बाद मृतक के लिए आखिरी प्रार्थना शुरू की जाती है। प्रार्थना के बाद शव को चील और गिद्ध जैसे पक्षियों के लिए छोड़ दिया जाता है।
हिंदू रीति रिवाज का ये है कारण :
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कभी मौजूदा ईरान यानी फारस को आबाद करने वाले इस समुदाय के लोग अब पूरी दुनिया में थोड़े से ही बचे हैं। 2021 में हुए एक सर्वे के मुताबिक दुनिया में पारसियों की तादाद 2 लाख से भी कम है। इस समुदाय को दुनियाभर में अंतिम संस्कार की अनोखी परंपरा के चलते मुश्किल का सामना करना पड़ता है। टावर ऑफ साइलेंस के लिए उचित जगह नहीं मिलने और चील व गिद्ध जैसे पक्षियों की कमी के चलते पिछले कुछ सालों में पारसी लोगों ने अपने अंतिम संस्कार के तरीके में बदलाव शुरू किया है।
पारसी समुदाय के काइकोबाद रुस्तमफ्रैम हमेशा यही सोचते आए थे कि जब वह मरेंगे तो पारसी धर्म की परंपरा के अनुसार गिद्ध उनके शव को ग्रहण करेंगे लेकिन अब भारत के आसमान से यह पक्षी लगभग गायब हो चुका है। ऐसे में पारसियों के लिए अपनी सदियों पुरानी परंपरा को निभाना भी बहुत मुश्किल हो चला है। अब कई पारसी परिवार अपने परिजनों को हिंदुओं के श्मशान घाट या विद्युत शवदाह गृह में ले जाने लगे हैं।