बाल ठाकरे हिन्दू और हिंदुत्व के हृदय सम्राट की पुण्यतिथि पर विशेष, जाने क्या था उनका दबदबा।

हिंदूहृदयसम्राट शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे का आज दसवां स्मृति दिवस है। संकटों का पहाड़ टूटा फिर भी उन संकटों की छाती पर पैर रखकर खड़े रहनेवाला उनका नेतृत्व। कई विवादों, आंधी और तूफानों का डटकर मुकाबला किया और उसे पलट दिया। लगभग चार दशक तक महाराष्ट्र की राजनीति को अपने इशारों पर नचाने वाले शिवसेना संस्थापक बाला साहब ठाकरे की आज नौवीं पुण्यतिथि है। उन्होंने आज के ही दिन (17 नवंबर 2012) 86 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कहा था। बाला साहब की छवि एक कट्टर हिंदूवादी नेता के तौर पर रही। बाला साहब बाहर से आकर मुंबई में बसने वाले लोगों के खिलाफ थे। उनका मानना था जो पहले यहाँ पैदा हुये है , यहाँ उनका पहला अधिकार है, मराठियों के अधिकार को लेकर उनकी लड़ाई प्राथमिक रही। 

मुंबई :शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब केशव ठाकरे (बाल ठाकरे) ने आज ही के दिन यानी 17 नवम्बर (2012) को इस दुनिया को अलविदा कहा था। बाल ठाकरे भारतीय राजनीति का वह चेहरा रहे हैं, जिनके इर्द-गिर्द करीब चार दशक तक महाराष्ट्र की राजनीति घूमती रही। किसी के लिए नायक तो किसी के लिए खलनायक रहे बाल ठाकरे जब तक जिंदा रहे, अपनी शर्तों पर जीते रहे।

एक पत्रकार और कार्टूनिस्ट के रूप में करियर की शुरुआत करने वाले बाल ठाकरे के लिए नियति ने कुछ और ही तय कर रखा था। 23 जनवरी 1926 को केशव सीताराम ठाकरे के घर जन्मे बाल ठाकरे ने ‘द फ्री प्रेस जर्नल’ से अपने करियर की शुरुआत करने के बाद 1960 में ‘मार्मिक’ नाम से अपनी खुद की राजनीतिक मैगजीन शुरू की।

बताया जाता है कि बाल ठाकरे के राजनीतिक विचार अपने पिता से ही प्रेरित रहे हैं, जो युनाइटेड महाराष्ट्र मूवमेंट के एक बड़े नेता थे। इस मूवमेंट के जरिए भाषाई तौर पर अलग महाराष्ट्र राज्य बनाने की मांग हो रही थी। बाल ठाकरे की जिंदगी में विवादों के लिए हमेशा एक खास कोना सुरक्षित रहा। सही मायनों में देखा जाए तो उनकी इमेज एक कट्टर हिंदू नेता के तौर पर रही और शायद इसी वजह से उन्हें हिंदू सम्राट का तमगा भी दिया गया।

शिवसेना का गठन और राजनीति में प्रवेश
‘मार्मिक’ के जरिए बाल ठाकरे ने मुंबई में गुजरातियों, मारवाड़ियों और दक्षिण भारतीय लोगों के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ मुहिम चलाई। इसी क्रम में 1966 में बाल ठाकरे ने मुंबई के राजनीतिक और आर्थिक परिदृष्‍य पर महाराष्‍ट्र के लोगों के अधिकार के लिए शिवसेना का गठन किया। वामपंथी पार्टियों के खिलाफ खड़ी की गई शिवसेना ने मुंबई में मजदूर आंदोलनों को कमजोर करने में अहम भूमिका निभाई।

1966 में लगे दो-दो झटके, पर नहीं मानी हार
यह वह दौर था जब बाल ठाकरे को एक साथ दो-दो झटके लगे। 1996 में पत्नी मीना ठाकरे और बेटे बिंदुमाधव की मौत हो गई। लेकिन ठाकरे ने हार नहीं मानती और मजबूती से खड़े रहे। राजनीति में उनका कद बढ़ता गया। इस बीच भारतीय राजनीति की दक्षिणपंथी धुरी बीजेपी और शिवसेना स्वाभाविक दोस्त बनकर उभरीं। अचरज की बात नहीं है कि शिवसेना बीजेपी की सबसे पहली सहयोगी पार्टी बनी।

राज ठाकरे के अलग होने से हुई क्षति
बता दें कि शुरू में बाल ठाकरे की सियासी विरासत के वारिस लंबे समय तक उनके भतीजे राज ठाकरे माने जाते रहे। कथित तौर पर बाल ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे द्वारा दरकिनार किए जाने पर 9 मार्च 2006 को राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस)नाम से अलग पार्टी बना ली। निजी और राजनीतिक रूप से बाल ठाकरे के लिए यह बहुत बड़ क्षति थी।

ठाकरे और विवाद चलते रहे साथ-साथ
बाहरी दुनिया के लिए कट्टर आदर्शवादी राजनेता बाल ठाकरे कम्पलीट फैमिली मैन भी थे। राजनीति बालासाहेब ने भले ही भाषाई और क्षेत्रीयता के आधार पर की लेकिन उनकी शख्सियत ऐसी थी कि साउथ के भी राजनेता से लेकर अभिनेता तक उनसे मिलने को आतुर रहते थे। बाल ठाकरे और विवाद हमेशा साथ-साथ चलते रहे। बतौर आर्टिस्ट और जनसमुदाय के नेता के तौर पर हिटलर की तारीफ कर उन्होंने जबर्दस्त विवाद पैदा किया था। इसके अलावा लिट्टे का समर्थन, वैलंटाइन्स डे जैसी चीजों का जबर्दस्त विरोध उनके विवादों की लिस्ट बढ़ाती रहीं।

1966 में शिवसेना के नाम से बनाई राजनीतिक पार्टी
उन्होंने 1966 में शिवसेना के नाम से राजनीतिक पार्टी बनाई। उन्होंने अपनी विचारधारा आम जन तक पहुंचाने के लिए 1989 में ‘सामना’ नामक अखबार लॉन्च किए। उनके राजनीतिक कद का अंदाजा इस बात से लग सकता है कि उनके निधन की खबर सुनते ही मुंबई में चारों ओर सन्नाटा पसर गया था। अंतिम संस्कार के दिन भी आलम वैसा ही रहा। अंतिम यात्रा में दो लाख से ज्यादा लोग शामिल थे। सड़कें खाली पड़ी रहीं और गाड़ियों की आवाजाही न के बराबर थी। 

कांग्रेस से विरोध के बावजूद इन्हें समर्थन
बाल ठाकरे की शख्सियत केवल राजनीति के रूप में ही नहीं बल्कि उनकी पहचान कला के क्षेत्र में भी जबर्दस्त थी। बाल ठाकरे की दुर्गा पूजा की रैली मुंबई की सबसे चर्चित रैलियों में से एक रही। बता दें कि बाल ठाकरे की कांग्रेस से कभी नहीं बनी। इसके बावजूद उन्होंने 2012 के राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार प्रणव मुखर्जी का समर्थन किया था। इसके पहले भी उन्होंने प्रतिभा पाटिल का महाराष्ट्र से होने के नाम पर समर्थन किया था।