टिकट को लेकर नेता पार्टियों पर बना रहे है सामाजिक दबाव। समाज के नाम पर टिकट लेने वाले जनता से क्या सरोकार रखेंगे? : राकेश डेंगवानी।

रायपुर : चुनाव में टिकटों के लिये दावेदारी करने वाले नेता अपनी – अपनी पार्टियों पर दबाव बना रहे है, विधानसभा चुनाव का समय पास आते ही टिकट की चाह रखने वाले उम्मीदवारों ने अपने-अपने समाज के लोगों के जरिए प्रमुख पार्टी कांग्रेस-भाजपा में दबाव बनाना शुरू कर दिया है। कांग्रेस और भाजपा में ही टिकट की मांग को लेकर लगभग एक दर्जन समाजों ने वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात कर ज्ञापन सौंपा है। उन नेताओं का कहना है कि उनकी दावेदारी मजबूत है और वो अपने समाज के एकमुश्त वोटों के आधार पर चुनाव जीत जायेंगे।

अब दोनों ही पार्टियां इस स्थिति से निपटने के लिए रणनीति बनाने में जुटी हुई है। जानकारी के अनुसार दोनों पार्टी के बड़े नेता सामाजिक दबाव बनाने वालों की कुंडली निकलवा रहे है। साथ ही चुनाव में समाज में फूट न पड़े इसलिए खुद बड़े नेता दोनों सामाज के अलग-अलग धड़ों के लोगों से व्यक्तिगत मिल कर नफा और नुकसान बता रहे हैं। उनको समझा रहे है, पार्टी के चुनाव जीतने के बाद इस मुद्दे का समाधान निकाला जायेगा।

चुनाव में जीत का भरोसा दे रहे हैं सामाजिक नेता :

समाज के सक्रिय लोगों द्वारा कांग्रेस-भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को ज्ञापन सौंपते समय अपने-अपने दावेदारों को जिताने का भरोसा भी दिला रहे हैं। साथ ही अन्य समाजों के वोटरों को भी खुद साधने की बात कर रहे हैं। साथ ही ज्ञापन में विधानसभा क्षेत्र के सामाजिक और जातीय समीकरण के बारे में विस्तार से नेताओं को बताया भी जा रहा है। यह बात सिर्फ एक समाज की नहीं है, बल्कि सभी समाजों से जुड़े पार्टी नेता अब यही रणनीति अपना रहे है।

इधर प्रमुख पार्टियाँ परेशान है, दावेदारों को समझा रहे वरिष्ठ नेता :

टिकट की चाह रखने वाले समाज में वर्चस्व रखने वाले टिकट के दावेदारों को वरिष्ठ नेताओं द्वारा समझाया जा रहा है। सूत्रों के अनुसार नेताओं द्वारा दावेदारों से कहा जा रहा है कि पार्टी की सरकार आने के बाद निगम-मंडलों में अध्यक्ष बना दिया जायेगा। फिलहाल पार्टी के सर्वे और जीतने वाले लोगों को ही पार्टी ने टिकट देने का निर्णय लिया है। वैसे भी दावेदारों का नाम पैनल में नाम तो चला गया है, अब सामाजिक दबाव बनाने से कोई फायदा नहीं है। साथ ही यह भी कहा रहा है कि समाज तो जिता देगा, लेकिन बाकी वोटरों की गारंटी कौन लेगा और समाज के लोग हैं, उनको कौन साधेगा।

ये सामाजिक संगठन कर चुके हैं दावेदारी :

सिंधी समाज, चंद्राकर समाज, मसीही समाज, सतनामी समाज, अग्रवाल समाज, साहू समाज, वर्मा समाज, ब्राह्मण समाज, कबीरपंथी समाज, मानिकपुरी समाज, निषाद समाज व अन्य शामिल हैं।

चुनाव जीतने के लिये सिर्फ सामाजिक गुणा – भाग ही जरुरी नहीं :

चुनाव जीतने के लिये सिर्फ समाज का साथ होना ही आवश्यक नहीं है, सम्पूर्ण जनता का विश्वास जीतना भी आवश्यक है, सिर्फ एक समाज के नाम पर टिकट मिलने पर अन्य समाज के वोटों का क्या? चुनाव जनता के लिये जीता जाता है, उसकी मूलभूत सुविधाओं से सरोकार रखना पड़ता है, समाज के नाम पर टिकट मांगने वाले नेताओं का समाज में ही जनाधार हो ये भी आवश्यक नहीं है, समाज से भावना रखने वाला वोटर जरुरी नहीं की समाज के नाम पर ही अपना मत दे, बल्कि वो सम्बंधित पार्टी के विचार से ही वोट देने का प्रयास करता है, जैसे छत्तीसगढ़ का पिछला राज्य चुनाव भाजपा हार गई लेकिन केन्द्रीय चुनाव में जनता ने उसे पूर्ण बहुमत दिया, जनता के लिये चुनाव के आधार प।र विचार धारा बदल जाती है, आज जरुरी नहीं की समाज के नाम पर वोट देने के लिये समाज के आम वोटर एक हो क्यूंकि बदलते समय से हर चीज का बदलाव हो गया है, जहाँ मुस्लिम समाज कट्टर भाजपा विरोधी था अज वो भी भाजपा को अपने एक तिहाई वोट देने लगा है, तो ऐसे में सिर्फ समाज के आधार पर पार्टियाँ टिकट क्यूँ दें?

समाज के नाम पर सिर्फ वोटों का अंतर ही पैदा किया जा सकता है, ना की किसी को चुनाव हरवाया या जितवाया नहीं जा सकता, पार्टियाँ इस बात को समझने लगी है, इसलिये वो अब सम्पूर्ण जनता के विश्वास के आधार पर ही खरा उतरने वाले नेता को ही टिकट देंगे, कोई भी पार्टी अपना नुकसान नहीं करना चाहेगी। वैसे भी जातिगत समीकरण देश के लिये उचित नहीं है, जहाँ भारतीय सेना में कोई जाति – धर्म नहीं माना जाता, वहीँ मोदी जी भी मेरे 140 करोड़ भारतवासी कहते है, जातिगत आधार पर टिकट मांगने के बजाये नेताओं को खुद को महत्वपूर्ण बनाना चाहिये, जिससे पार्टी उन्हें खुद ही टिकट दे। : राकेश डेंगवानी (स्वतन्त्र पत्रकार)