छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन असंभव, भाजपा को मिल सकती है इतनी सीटें, एंटीइनकमबेंसी का असर कम नहीं कर पाई भाजपा, चारों विधानसभा का ये रहेगा परिणाम।

रायपुर : सत्ताधारी दल से जनता की नाराजगी रहती ही है, इसमें कोई दो राय नहीं है, ऐसे ही तीन बार की लगातार सत्ता से उन्हीं चेहरों को बार – बार देखकर जनता उकता गई, ऊपर से पहली सत्ता में भाजपा ने शानदार काम किये वहीँ दोबारा सत्ता में आई, उसके बाद फिर सत्ता में आने के बाद सरकार पर दाग लगना शुरू हुये। फिर तीसरी बार सत्ता में आने वाले उन्हीं मंत्रियों को लगने लगा कि अब उन्हें सत्ता से बाहर करना लगभग नामुमकिन है, जिसको लेकर उनके व्यवहार में जनता के प्रति व्यवहार बदलने लगा और उन्होंने गलत निर्णय लेना शुरू कर दिया, उसी समय समय कर्मचारी, शिक्षाकर्मी , किसान और आम जनता का अधिकतर वर्ग नाराज होने लगा, तीसरे कार्यकाल में मुफ्त की मोबाईल बांटना व्यापारी वर्ग को नागवार गुजरा, वैसे ही आम जनता दोहराने वाले चेहरों से बोर होने लगी थी, इसी बीच गर्भाशय कांड और आँख फोड़वा काण्ड से छत्तीसगढ़ का गरीब तबका सरकार से कट गया और परिणाम स्वरूप सत्ता से भाजपा बेदखल हो गई। सिंधी समाज आमतौर पर भाजपा का वोट बैंक समझा जाता है। लेकिन इस बार भाजपा ने सिंधी समाज को एक भी टिकट न देकर समाज की नाराजगी मोल ली है। ऐसे में रायपुर उत्तर का सिंधी मतदाता सहज रूप से ही सिंधी प्रत्याशी अजीत कुकरेजा की ओर आकर्षित हो जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिये।

फिर उन्हीं दागी और उकताने वाले चेहरों को भाजपा ने दिया है मौका :

जहाँ आम जनता उन्हीं गिने चुने चेहरों को नापसंद कर रही थी , उन्हें ही दोबारा मौका दे दिया गया म जिसके कारण वहीँ से भाजपा के हार तय हो गई थी। इन चेहरों में बृजमोहन अग्रवाल , राजेश मूणत, अमर अग्रवाल, अजय चंद्राकर, प्रेमप्रकाश पाण्डेय, रमन सिंह है। अब यही टीम दोबारा सत्ता में आयेगी ये सोचकर अधिकतर वोटर इनसे कट रहे है, जहाँ आम जनता योगी आदित्यनाथ और हेमंत बिस्वा जैसे मुख्यमंत्री की उम्मीद कर रही थी, वहीँ रमन सिंह को टिकट देने से उस उम्मीद पर भी पानी फिर गया। कुल मिलाकर इस बार भी भाजपा ने अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली है, 2003, 2008 और 2013 में भाजपा की जीत का वोट औसत वोट प्रतिशत मात्र 0.95% था, अब वो अंतर कांग्रेस की सत्ता के बाद बढ़े गड्ढे में बदल गया है, जो की वापस मिलना मुश्किल है।

सीटों का अंतर इतना हो सकता है :

यहाँ विधानसभा की कुल सीटों की संख्या 90 है। कांग्रेस के खाते में औसत 46 सीटें जा सकती हैं, जबकि भाजपा को 40 तक पहुंचना मुश्किल है। वहीँ अन्य के हिस्से में 2-6 सीटें जा सकती हैं। इस तरह छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनती हुई नजर आ रही है।

रायपुर की चार विधानसभा सीटों की ये तस्वीर सामने आ रही है :

जहाँ भाजपा ने उत्तर – पश्चिम और ग्रामीण की जीत का सर्वे करवाया था वहीँ दक्षिण की हार का अनुमान भाजपा के पार्टी सूत्रों के अनुसार सामने आया था, लेकिन चुनाव पास आते तक जो स्पष्ट तस्वीर सामने आ रही है, वहां आज भी पश्चिम विधानसभा में राजेश मूणत का चेहरा लोगों को अति आत्मविश्वास से सराबोर नजर आ रहा है, वहीँ अधिकतर लोग विकास उपाध्याय को पसंद कर रहे है, यह क्षेत्र हिंदूवादी वोटों से भरा हुआ है, जो भाजपा को वोट देना चाहते है, लेकिन मूणत को नहीं , वहीँ कांग्रेस के वोटों में कोई कटौती होती नहीं दिख रही है। यहाँ मुकाबला 50-50 का ही लग रहा है।

दक्षिण विधानसभा में जहाँ बृजमोहन अग्रवाल की जीत निश्चित है, वहीँ इस बार जीत का अंतर बहुत कम हो जायेगा, वैसे भी इस बार उनका यह चुनाव आखरी माना जा रहा है, अगर कांग्रेस से यहाँ ऐजाज ढेबर को टिकट मिल जाता तो बृजमोहन अग्रवाल का जीतना मुश्किल था, इस सीट पर कांग्रेस ने कमजोर दांव खेला है, जबकि इस विधानसभा में कांग्रेस का जनाधार बढ़ गया है।

ग्रामीण विधानसभा में वैसे कोई हेरफेर दीखता नजर नहीं आ रहा है, सामान्यतौर पर यहाँ सत्यनारायण शर्मा का गढ़ माना जाता है और इस बार यहाँ से उनके पुत्र पंकज को टिकट मिली है, उनकी जीत तय मानी जा रही है। जानकारी के अनुसार इस सीट पर भाजपा खूब मेहनत कर रही है।

उत्तर विधानसभा में कुलदीप जुनेजा को हराना मुश्किल हो गया है, सबसे पहले तो इनके सामने पुरंदर मिश्र जैसा नया चेहरा उतारा गया है, वहीँ सावित्री जगत लगभग 500 ओड़िया वोट भाजपा से काट सकती है, अजीत कुकरेजा को कांग्रेस से टिकट ना मिलने पर उन्होंने निर्दलीय नामांकन भरा है, जहाँ उनका खुद का जनाधार भी दमदार है, वो दोनों पार्टियों के वोट काटेंगे, 90% सिन्धी वोट भाजपा से काटेंगे और और कांग्रेसी वोट भी लगभग 20% तक खींचकर ले आयेंगे। निर्दलीय लड़ने के कारण अजीत कुकरेजा को कांग्रेस पार्टी ने 6 वर्ष के लिये निलंबित भी कर दिया है, लेकिन अजीत कुकरेजा पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ेगा, सालभर बाद होने वाले चुनाव में वो निर्दलीय लड़कर पार्षद बन ही जायेंगे और जीत के बाद पार्टी वापस उन्हें मना लेगी।