दिवाली पर फटाके फोड़ने से प्रदूषण होता है, हिन्दू त्यौहारों पर ही ये ज्ञान क्यूँ दिये जाते है?

राकेश डेंगवानी/सम्पादकीय : हम यहाँ पर यह बताने नहीं आये है कि दिवाली का त्यौहार क्यों मनाया जाता है, हम तो बस इस बात को समझने आये है कि हिन्दू त्योहारों पर ही प्रकृति का नुकसान कैसे होता है? अब चूँकि दो दिन बाद दिवाली का त्यौहार है तो पटाखों पर बैन की बात कही जा रही है, यह कितना उचित है? खैर पहले हम ये समझें की दिवाली पर पटाखे क्यूँ फोड़े जाते है? सबसे पहले तो हम आपको बता दें कि दिवाली पर पटाखे फोड़ना किसी भी धर्मग्रन्थ में नहीं लिखा है, जब ये पौराणिक गाथायें घटित हुई थी तब पटाखे नहीं थे, फिर हम पटाखे क्यूँ फोड़ते है?

दिवाली पर हम पटाखे क्यूँ फोड़ते है भाई :

हम यहाँ मुख्य पौराणिक गाथा का वर्णन करके समझते है, अब भगवान को की माने या ना माने , भगवान को कोई फर्क नहीं पड़ता, चलिये आगे देखते है, धार्मिक ग्रंथों के अनुसार कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को भगवान श्री राम 14 वर्षों के बाद वनवास की समय अवधि पूर्ण करके अपनी जन्मभूमि अयोध्या नगरी लौटे थे। इसी उपलक्ष में संपूर्ण अयोध्या वासियों ने दीपोत्सव का आयोजन कर भगवान श्रीराम का स्वागत किया था। तब से हर साल कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को दीपावली का त्योहार उसी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। साथ ही घरों के साथ-साथ आसपास की जगहों को भी रोशनी से सजाया जाता है। यह त्यौहार दिये जलाकर मिठाइयाँ आदि बांटकर मनाया गया होगा, तो हम भी भगवान को मानते है तो बदलते समय में हमारे पास दिये है , टिमटिमाती लाइटे है, और साथ में हमने फटाके भी बनाये है, अब तो चमकती हुई कतरने, फोग वाले स्प्रे और भी ना जाने क्या क्या चीजें आ गई है, जिन्हें आप जानते ही होंगे।

तो अब हम फटाकों की बात करते है, अब जब भगवान राम अयोध्या लौटे तो अयोध्या वासियों ने उनका स्वागत किया, उस ज़माने में अपने तरीके से उन्होंने खुशियाँ मनाई, तो अब दिवाली पर हम भी आज के आधुनिक युग में भगवान के आगमन की खुशियाँ अपने तरीके से मनाते है, अब आप बाईक के ज़माने में सायकल और मोबाईल के जमाने तो लैंडलाईन का प्रयोग तो नहीं करोगे ना बस, अब हम भगवान राम के आगमन पर दिये जलाकर, रंगीन बल्बों की लड़ियाँ बिजली से जलाकर, स्वादिष्ट मिठाइयाँ बनाकर और बांटकर, और हाँ साथ में फटाके फोड़कर मनाते है, अगर आप मिठाई की जगह चोकलेट खाकर मुंह मीठा कर सकते हो तो भाई, फटाके फोड़कर त्यौहार मनाने में क्या दिक्कत है?

पटाखों में प्रदुषण को लेकर दिल्ली के साथ देशभर में बैन लगाया गया है :

दिल्ली में भयंकर प्रदुषण है वो सालभर तो पता नहीं चलता, तो वो सिर्फ दिवाली के दिन ही कैसे हो जाता है? सबसे पहले तो आपको बता दूँ ये नौटंकी सन 2000 के पहले नहीं होती थी, जब हम सारी रात फटाके फोड़ते थे, तो अब ये सब क्यूँ हो रहा है? इन सबके पीछे हिन्दू विरोधी मानसिकता है। प्रदुषण का मुख्य कारण वाहनों में बेतहाशा बढ़ोत्तरी और औद्योगीकरण के साथ पेड़ों की अंधाधुंध कटाई है, प्रकृति के संसाधनों का बेतहाशा दोहन है, बरगद , पीपल और निम् के पेड़ लगाने से परहेज और विदेशी पेड़ों को लगाकर भारत की हवा को दूषित किया जा रहा है। कभी कहते है रंग मत लगाओ , पतंग मत उड़ाओ, फटाके मत फोड़ो और क्या – क्या ?

गंगा का पानी साफ नहीं है तो इसका प्रमुख कारण गंगा के मुहाने पर राजनैतिक फायदे को लेकर वहां बेतरतीब उद्योग लगा दिये गये है, आज उन उद्योगों का भयंकर गन्दा और रासायनिक पानी नहीं में सीधा बहा दिया जाता है, उन उद्योगों को वहां से 200 किलोमीटर दूर ले जाऊं गंगा खुद ही साफ न हो जाये तो कहना।

अब फिर फटाकों पर आइये :

आपको सोशल मिडिया पर के संदेशों में कई सन्देश प्राप्त होते है, उन पर भरोसा तो नहीं किया जा सकता , लेकिन संदेशों की बातें कुछ ना कुछ मानने योग तो होती है, 5 वर्ष इंदौर नगर निगम के अधिकारी का बयान अख़बार छपा था, की दिवाली के बाद एक 50% मच्छर कुछ प्रजाति के ख़त्म हो गये बस अब आधे बाकी मच्छरों के लिये काम करना है। मै हालाँकि इस बात का समर्थन तो नहीं कर रहा। हर बात के दो पहलु होते है, हालांकि फटाखों के शोर से जीव जन्तु परेशान होते है, घरों के बुजुर्ग भी परेशानी झेलते है, लेकिन क्या हमें त्यौहार मनाने बंद कर देने चाहिये? फटाकों से 100 गुना ज्यादा प्रकृति का नुकसान प्लास्टिक की बोतलें, पन्नियाँ, डिस्पोजल चीजें, इलेक्ट्रोनिक कचरे कर रहे है। तो हमें मनाना बंद करना चाहिये या इनका समाधान निकालना चाहिये। पेड़ों (बरगद, नीम, पीपल) की संख्या दुगुनी कर दो प्रदूषण ख़त्म और जमकर त्यौहार मनाओ भाई, हमारे ही धर्म में खुशियाँ मनाना सिखाया गया है, अन्य किसी दूसरे के धर्म में मातम और डर के त्यौहार मनाये जाते है। सनातन धर्म की जय बोलो। फैसला आपका।