रायपुर : राज्य में भाजपा की अप्रत्याशित जीत से जहाँ भाजपाइयों में ख़ुशी का माहौल है, वहीँ कांग्रेस को इस हार से करारा सदमा पहुंचा है, जहाँ कुलदीप जुनेजा ने उत्तर से अजीत कुकरेजा का विरोध किया था वहीँ, अजीत कुकरेजा ने भी उन्हें गहरा नुकसान पहुँचाया। राजधानी की सभी सातों विधानसभा सीटों पर भाजपा ने एकतरफा कब्जा किया है। यहां कांग्रेस का जातिवादी समीकरण फेल तो हुआ ही, साथ ही विकास और छत्तीसगढ़ियावाद का किला भी ढह गया। इसके पीछे प्रमुख भूमिका भितरघाती और बागियों की ही रही है।
रायपुर उत्तर विधानसभा क्षेत्र में खुलकर बागी होकर बतौर निर्दलीय प्रत्याशी खड़े हुए अजीत कुकरेजा ने कांग्रेस को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। यहां कुकरेजा को 22,939 मत मिले, जो कि एक निर्दलीय प्रत्याशी को मिलना लगभग नामुमकिन है, लेकिन अजीत की दस साल की जमीनी मेहनत का ये परिणाम माना जा रहा है। वहीं, कांग्रेस और भाजपा के बीच हार का अंतर भी 23,054 ही रहा। ऐसे में अगर कुकरेजा कांग्रेस से बागी न हुए होते तो यहां का मुकाबला काफी हद तक कांग्रेस के पक्ष में होता। इस बार इस क्षेत्र में पिछली बार की अपेक्षा 10 हजार वोट कम पड़े।
रायपुर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में जातिवाद का समीकरण भी कांग्रेस को फायदा नहीं पहुंचा पाया। यहां मौदहापारा जैसे अल्पसंख्यक इलाके में भी जनता ने कांग्रेस के बजाय भाजपा को ज्यादा पसंद किया। यहां तीन हजार की आबादी में से लगभग 1,800 मत बीजेपी के पक्ष में पड़े, मतलब इस बार मुस्लिम वोट भी कांग्रेस से बिदककर भाजपा के समर्थन में गये है। इसकी वजह से भाजपा को फायदा मिला। इसके अलावा रायपुर ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र में भितरघात के कारण पंकज शर्मा को हार का सामना करना पड़ा। जबकि अनुमान यह है कि सत्यनारायण शर्मा खड़े होते तो यह सीट कांग्रेस के खाते में चली जाती।
ग्रामीण में टिकट नहीं मिलने की नाराजगी :
रायपुर ग्रामीण विधानसभा में कांग्रेस की ओर से कांग्रेस से पार्षद और एमआइसी सदस्य नागभूषण राव ने भी टिकट की दावेदारी की थी। इसके बाद कांग्रेस से प्रत्याशी बनाए गए पंकज शर्मा के विरोध में खुलकर आ गए थे। इसकी वजह से कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने नोटिस भी जारी किया था, जिसके बाद जवाब देने के बाद उनके खिलाफ कार्यवाही नहीं की गई थी। उन्होंने खुलकर कांग्रेस का समर्थन नहीं किया। इसकी वजह से ग्रामीण में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। हालाँकि हार के कारणों में शहरी क्षेत्र के मतदाताओं के वोट ग्रामीण में जुड़ने से भी परिणाम में फर्क माना जा रहा है।
पश्चिम में हिंदुत्व का परचम :
विधानसभा चुनाव 2023 से पहले जितनी भी धार्मिक सभाएं पश्चिम विधानसभा में आयोजित की गईं, शायद किसी और विधानसभा क्षेत्र में इस तरह की सभाएं नहीं हुईं। वहीं, प्रधानमंत्री मोदी की गारंटी और हिंदुत्ववाद का भी परचम यहां साफ तौर पर देखने को मिला। इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिला और जनता ने कांग्रेस को सिरे से खारिज कर दिया। यहाँ पर RSS के शोभायात्रा के दौरान एक बार हमला भी हो चूका है। इस क्षेत्र के अधिकतर लोग हिंदुत्व की विचारधारा से जुड़े हुये बताये जाते है, जो कि भाजपा को समर्थन करते है।
आरंग में जातिगत समीकरण नहीं साध पाए :
आरंग में कांग्रेस के मंत्री डा. शिव डहरिया का सामना गुरु खुशवंत के साथ हुआ। दोनों एक ही जाति के रहे, लेकिन खुशवंत को धर्मगुरु होने का सीधा फायदा मिला। इसकी वजह से यहां से शुरुआती दौर में तो कांग्रेस को बढ़त मिली, लेकिन दो से तीन राउंड के बाद जो पासा पलटा वह अंत तक नहीं बदल पाया।
अभनपुर और धरसींवा में बदलाव की बयार :
अभनपुर में पिछले कई वर्षों से विधायक रहे धनेंद्र साहू और इंद्र कुमार साहू के बीच मुकाबला हुआ। यहां बदलाव की बयार और एंटी इन्कम्बेंसी ने कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया। कुछ इसी तरह धरसींवा में अनुज शर्मा को अनीता योगेंद्र शर्मा के टिकट कटने और राज्य सभा सांसद की निष्क्रियता का फायदा मिला। यहाँ ब्राम्हण वोटों का मुख्य किरदार था जो कि अनुज शर्मा की जीत का कारण बना।