रायपुर : प्रधानमंत्री जन औषधि योजना में दवाइयां काफी कम दामों में मिलती है, यह योजना काफी महत्वपूर्ण और फायदेमंद है, जो लोग इस योजना के प्रति जागरूक है वो लगातार इसका बेहिसाब फायदा उठा रहे है, यहाँ मिलने वाली दवाइयों में अधिकतर लोग BP , सुगर जैसी कॉमन दवाइयां लगातार खरीदते है, इन दवाइयों में उन्हें 70% तक की बचत होती है, लेकिन कुछ लोग अपने उदासीन रवैये के कारण इस योजना पर ध्यान नहीं देते, जिससे इस योजना को जरूरत के अनुसार बढ़ावा नहीं मिल पाया है। जिसके कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की महत्वाकांक्षी इस योजना का प्रदेश में बुरा हाल है। सस्ती दवाएं उपलब्ध कराने की प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना का समुचित लाभ लोगों को नहीं मिल पा रहा है। इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि प्रदेश में 179 दुकानें हैं, लेकिन इनमें से केवल 67 ही संचालित हैं। 23 दुकानें बंद हो चुकी हैं, जबकि 89 निष्क्रिय हैं। जिन जिलों में दुकानें संचालित हैं, उनमें भी 1,300 की जगह मात्र 200 से 300 तरह की ही दवाएं उपलब्ध है। माल ना बिकने के कारण दुकानदार नया माल नहीं मंगवा रहा है, जबकि वाही दवाइयां लोग महंगे में मेडिकल स्टोर से खरीदते है, ना ही मेडिकल वाले चाहते है और ना ही डॉक्टर की दवाइयां कम दाम में बिके, जिससे उनका नुकसान हो, लेकिन आम आदमी की उदासीनता के चलते ये दुकानें बंद होने की कगार पर है।
90 प्रतिशत तक सस्ती दवा मिलने की उम्मीद में कैंसर, आंख, ब्रेन व अन्य बीमारियों से जूझ रहे मरीज दुकानों से लौटने को विवश हैं। वर्ष-2015 में प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना की शुरुआत की गई थी। इसका उद्देश्य लोगों पर दवा के खर्च को कम करना तथा बेरोजगारों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने की थी। ये दोनों ही उद्देश्य पूरे नहीं हो पा रहे हैं। इसका प्रमुख कारण लोग ब्रांडेड कंपनी की उन्हीं दवाइयों को महंगे में लेने के लिये तैयार है पर उन्हें इन पर भरोसा नहीं हो पा रहा है।
परियोजना से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि प्रदेश में 249 प्रधानमंत्री जनऔषधि केंद्र स्वीकृत हैं। इन दुकानों को प्रदेश के सभी जिला अस्पताल और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में संचालित किया जाना है। प्रदेश में 26 जिला अस्पताल, 157 सामुदायिक और 768 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं। प्रदेश में वर्ष-2016 में 120 दुकानें खोलकर योजना की शुरुआत की गई थी। दुकानों की संख्या बढ़कर 179 हुई, लेकिन शासन-प्रशासन की अनदेखी की वजह से एक-दो साल बाद ही बंद होना शुरू हो गई।
हमर अस्पताल खोलकर दुकानों को किया बाहर :
राजधानी के राजा तालाब, भनपुरी, गुढ़ियारी और भाटागांव शहरी स्वास्थ्य केंद्र का उन्नयन हमर अस्पताल के रूप में किया गया है। शहरी स्वास्थ्य केंद्र होने के दौरान इन केंद्रों पर जनऔषधि केंद्र संचालित हो रहे थे, लेकिन हमर अस्पताल शुरू होते ही इन्हें बंद कर दिया गया। स्वास्थ्य विभाग की ओर से इन केंद्रों में दुकानें संचालित करने के लिए जगह ही नहीं दी गई। इन स्वास्थ्य केंद्रों में रोजाना 100 से ज्यादा मरीज इलाज कराने के लिए पहुंचते हैं। रायपुर जिले में 16 में से केवल चार दुकानें संचालित हैं।
जेनेरिक पर लोगों का विश्वास नहीं, डाक्टरों की भी अनदेखी :
प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना के तहत दुकान का संचालन कर रहे एक संचालक ने बताया कि जेनेरिक दवाओं पर अभी भी लोगों का विश्वास नहीं है। स्वास्थ्य केंद्रों के डाक्टर भी मरीजों को विश्वास नहीं दिलाते। जबकि दवाएं 50 से 90 प्रतिशत छूट पर मिलती हैं। ये दवायें पूर्ण भरोसे की है, इनमें कोई भी कमी नहीं है।
जेनेरिक दवा वह है, जो बिना किसी पेटेंट के बनाई और वितरित की जाती है। जेनेरिक दवा के फार्मुलेशन पर पेटेंट हो सकता है, लेकिन उसके सक्रिय घटक पर पेटेंट नहीं होता। जैनरिक दवाइयां गुणवत्ता में किसी भी प्रकार से ब्रांडेड दवाओं से कम नहीं होतीं। ये उतनी ही असरकारक हैं, जितनी की ब्रांडेड दवाइयां। सभी दवाइयां वही है, बस इन पर कंपनी का लेबल लगा हुआ होता है। इसे यूँ समझे जहाँ सरदर्द की गोली डिस्प्रिन 11/- में दस गोली है, वहीँ दूसरी तरफ सरदर्द की सारीडान गोली 30/- में दस गोली है।
प्रधानमंत्री जनऔषधि योजना के राज्य समन्वयक अनिश वोडितेलवार ने कहा, प्रधानमंत्री जनऔषधि की खरीदी केंद्रीय स्तर पर होती है। कई दवाएं स्टाक में न रहने और आपूर्ति में देरी से समस्याएं आती हैं। सीएमएचओ और बीएमओ को कई बार पत्र देकर जगह की मांग की गई है। कई दुकानें पुराने भवन में ही संचालित हो रही हैं।
बंद और निष्क्रिय होने और दवा नहीं मिलने की मुख्य वजह :
– दुकानों पर फार्मासिस्टों की नियुक्ति नहीं हुई है l
– दुकानों के लिए स्वास्थ्य केंद्रों में अभी तक स्थान नहीं मिला हैl
– प्रशासनिक सहयोग का अभाव, सीएमएचओ-बीएमओ ने संज्ञान नहीं लिया हैl
– राज्य शासन की ओर से प्रतिस्पर्धा में धन्वंतरी योजना शुरू की गई थीl
– दुकानों में दवाओं की समय पर आपूर्ति नहीं होतीl
– बहुत से डाक्टर भी पर्ची पर नहीं लिखते जेनेरिक दवाएं।