यदि आधी दुनिया का इन्टरनेट बंद हो जाए तो क्या होगा? जानिये समुद्र के अंदर वैश्विक नेटवर्क को खतरा क्या और क्यों है?

नई दिल्ली : क्या आप जानते है, जो इन्टरनेट आप प्रयोग करते है वो कैसे चलता है, अगर नहीं तो यह खबर आपके लिये है। इंटरनेट का काम दो या दो से अधिक कंप्यूटरों को आपस में जोड़ना होता है, जिसे नेटवर्किंग कहते है, जिसमें दोनों कंप्यूटरों के बीच संग्रहित डाटा हा हस्तातंरण किया जाता है। अब जब यह दुनियाभर के कंप्यूटरों को जोड़ता है तो इनको आपस में जोड़कर प्रयोग करने के लिये मतलब इंटरनेट चलाने के लिये एक सर्वर जैसा कमरा बनाना होता है, जिसमें दुनियाभर के कंप्यूटरों को आपस में जोड़ना होता है, होता है जिसमें सभी सूचनाएं संग्रहित रहती हैं, जिसे दुनियाभर में कहीं भी भेजा सकता है। यह सर्वर 24 घंटे काम करते हैं।

यह सर्वर आपस में ऑप्टिकल फाइबर केबल द्वारा जुड़े होते हैं। यह केबलें समुद्र के अंदर बिछाई जाती है। ऐसे में पानी के नीचे हिमस्खलन वैश्विक इंटरनेट नेटवर्क के लिए एक बड़ा खतरा पैदा कर सकता है। यह हिमस्खलन तब होता है, जब समुद्र तल पर बिछे हुए छोटे-छोटे कण अचानक विस्थापित हो जाने से तेज गति से बहने वाली धाराएं बनती हैं। ये शक्तिशाली धाराएं जब समुद्र तल से होकर गुजरती हैं तो महाद्वीपों के बीच इंटरनेट और संचार डेटा के लिए बिछी मीलों लंबी केबलों को क्षतिग्रस्त कर सकती है।

दुनिया का पूरा नेटवर्क समुद्र में बिछी 550 से ज्यादा सक्रिय पनडुब्बी फाइबर ऑप्टिक केबल पर टिका है, जिसकी लंबाई 28 लाख किलोमीटर से अधिक है। यानी यह नेटवर्क केबल इतनी लंबी है कि इससे पृथ्वी को बीच से 70 बार लपेटा जा सकता है। यह वैश्विक डाटा 2023 अनुसार है। इसलिए यदि पानी के नीचे हिमस्खलन से ये नष्ट हुई तो इसका असर और खर्च बड़ा होगा। हमारे पास इन्टरनेट मोबाईल नेटवर्क या ब्रॉडबैंड के जरिये जरुर आता है, लेकिन इसका मुख्य आधार समुद्र के तल में बिछी हुई ये ऑप्टिकल फाईबर केबलें है।

2006 में हुआ था बड़ा नुकसान :

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26 दिसम्बर 2006 को ताइवान में आए पिंगतुंग भूकंप के कारण समुद्र के अन्दर हिमस्खलन हुआ था, जिससे दक्षिण-पूर्व एशिया को शेष विश्व से जोड़ने वाली कई समुद्री केबलें टूट गईं थी। इस घटना के कारण वैश्विक स्तर पर इंटरनेट ट्रैफिक और वित्तीय लेनदेन में बड़ी गिरावट आई थी और अधिकतर काम ठप्प हो गये थे। इस घटना की वजह से वैश्विक बाजारों को भारी नुकसान हुआ था और नेटवर्क को पूरी तरह से पुनः ठीक करने में 39 दिन लगे थे, जिसमें लाखों डॉलर का खर्च आया था। ऐसी स्थिति अब दुबारा आती है तो दुनियांभर को इसका बहुत बड़ा खामियाजा भुगतना होगा। वहीँ दो देशों के बीच युद्ध की स्थिति में भी पूरी दुनियां का नेटवर्क बैठाया जा सकता है। जिसको लेकर भारत सरकार ने अपने महत्वपूर्ण डाटा सेंटर अपनी निगरानी में रखे हुये है, वहीँ कुछ तकनीकों के लिये हम आज भी पश्चिमी देशों के भरोसे बैठे है।