एम्स में डॉक्टर कर रहे है मनमानी, एम्स की साख को लगातार लगा रहे है बट्टा, सामने आई ऐसी हरकत….।

रायपुर : अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स की गिनती वैसे तो प्रदेश के सबसे बड़े व अहम अस्पतालों में होती है, लेकिन यहां के कुछ डॉक्टर बेड की कमी बताकर मरीज को निजी अस्पताल भेज रहे हैं, कई चीजों से लगातार एम्स की साख में बट्टा लग रहा है, इलाज को लेकर यहाँ पर्याप्त सुविधायें नहीं मिल पा रही है, आये दिन मीडिया में एम्स की व्यवस्था को लेकर कोई ना कोई खबर सामने आती ही रहती। तत्कालीन अटल सरकार ने एम्स की सुविधाओं को आम आदमी तक पहुँचाने के लिए देशभर 7 एम्स बनाने की बात कही, उनका सस्ते और अच्छे की इलाज की उम्मीद को एम्स के जरिये पूरा नहीं किया जा रहा है, वहीँ दूसरी तरफ राजधानी के मेकाहारा में जहाँ मरीज इलाज के नाम से कतराते है आज मेकाहारा में बेहतर इलाज की सुविधायें विश्व पटल पर नाम कर रही है। ऐसे ही एक मामला सामने आया है जिसमें एम्स के डॉक्टरों ने निजी अस्पताल का नाम भी बकायदा डिस्चार्ज कार्ड में लिखा है। ये सब एम्स प्रबंधन के नाक के नीचे हो रहा है। एम्स के डॉक्टरों का निजी अस्पताल से क्या कनेक्शन है, ये जांच का विषय है।

ऐसे ही कई मामले सामने आये है, जिसमें से सामने आया है कि महादेवघाट निवासी 52 वर्षीय धरम साहू को न्यूरो संबंधी समस्या है। परिजनों ने उन्हें 2 सितंबर को एम्स में भर्ती कराया। उन्हें इमरजेंसी विभाग में रखा गया। 3 सितंबर की सुबह बेड खाली नहीं होने का हवाला देते हुए डॉक्टरों ने उन्हें डिस्चार्ज कर दिया। मरीज डिस्चार्ज न कर, दूसरे वार्ड में भेजने की गुहार लगाते रहे, लेकिन डॉक्टरों ने एक न सुनी। जबरिया डिस्चार्ज कार्ड भी बना दिया गया। इससे परिजन बड़ी मुश्किल में आ गये।

मीडिया वालों के पास डिस्चार्ज कार्ड की फोटो कॉपी भी है। इसमें रिफर्ड ऑन की तारीख 3 सितंबर है और अग्रवाल अस्पताल का नाम लिखा गया है। खास बात ये भी मरीज को डिस्चार्ज होने के पहले अग्रवाल अस्पताल का फोन भी आ गया कि मरीज को ला रहे हैं न। इससे परिजनों का माथा ठनका और हतप्रभ भी रह गए। निजी अस्पताल का फोन आने का मतलब ये है कि इमरजेंसी विभाग में सेवा दे रहे कोई डॉक्टर का कनेक्शन निजी अस्पताल से है और डिस्चार्ज कर मरीजों को वहां भेजने की जानकारी दे रहा है। जिसमें कमीशनखोरी का संदेह परिजनों द्वारा जताया गया है।

परिजनों दूसरे निजी अस्पताल ले गए मरीज :

राम से बड़ा है राम का नाम , रोज सुने यह धुन , लिंक पर करें क्लिक :   https://www.youtube.com/watch?v=TIkGGHYTb_Y

परिजन भी डॉक्टर की बात न मानते हुए व महंगे इलाज की आशंका में मरीज को अग्रवाल अस्पताल के बजाय दूसरे निजी अस्पताल लेकर चले गए। परिजनों का कहना है कि मरीज को एम्स से निजी अस्पताल भेजना बिल्कुल भी सही नहीं है। हर बार बेड की कमी का हवाला दिया जाता है। वहीँ ऐसे ही एक अन्य मामले में ऑब्स एंड गायनी के डॉक्टरों ने एडवांस मशीन नहीं होने का हवाला देकर एक गर्भवती महिला को जांच के लिए समता कॉलोनी एक निजी अस्पताल भेज दिया। वहां मरीजों के 5 से 6 हजार रुपए खर्च हो गए। मरीजों को बताया गया कि वहां एडवांस मशीन है व अच्छी जांच होती है। महिला के गर्भ में जुड़वां बच्चे थे, लेकिन कंडीशन सही नहीं था। समता कॉलोनी में जांच के बाद महिला का ऑपरेशन एम्स में किया गया। इस तरह के कई मामले एम्स से सामने आ रहे है, वहीँ जबरदस्ती डिस्चार्ज करने वाले मरीज को एडमिट होने के लिये भी बड़ी मशक्कत करनी पड़ती है।