नई दिल्ली : पाकिस्तान के तटीय प्रांत बलूचिस्तान के लसबेला में स्थित हिंगलाज माता मंदिर को यहां हिंगलाज देवी, हिंगुला देवी और नानी का मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह 51 शक्तिपीठों में एक है। ऐसा माना जाता है यहां हिंगोल नदी के तट पर किर्थर पवर्त की गुफा में माता सती का शीश गिरा था। अब यहीं हिंगलाज माता का मंदिर है। इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां हिंदू और मुस्लिम दोनों ही समुदाय के लोग शीश नवाते हैं। हिंगलाज देवी को नाथ संप्रदाय की कुलदेवी भी माना जाता है। हिंगलाज माता मंदिर पाकिस्तान स्थित दो शक्तिपीठों में है। दूसरा शक्तिपीठ कराची के निकट शिवहरकराय है। इसे करवीपुर के नाम से भी जाना जाता है। बताते हैं यहां माता का तीसरा नेत्र गिरा था।
आसान नहीं है यहां पहुंचना :
हिंगलाज माता के मंदिर पहुंचना अमरनाथ यात्रा से भी ज्यादा कठिन माना जाता है। रास्ते में 1000 फीट ऊंचे-ऊंचे पहाड़, दूर तक फैला रेगिस्तान, जंगली जानवर वाले घने जंगल और 300 फीट ऊंचा मड ज्वालामुखी पड़ता है। यहां अकेले यात्रा की मनाही है, इसीलिए आमतौर पर यहां श्रद्धालु ग्रुप में जाते हैं। यहां सडक़ मार्ग बनने से पहले 200 किमी की यात्रा पैदल करनी पड़ती थी, जिसमें दो से तीन माह का समय लगता था। बलूचिस्तान में स्थित हिंगलाज माता मंदिर तक पहुंचने के लिए, कराची से 250 किलोमीटर की दूरी तय करनी होती है। यहां जाने के लिए, मकरान कोस्टल हाइवे से मड वोलकेनो तक कुछ किलोमीटर पैदल चलना होता है। इसके बाद, चट्टानों पर चढ़ाई करके वोलकेनो तक पहुंचा जाता है।
रामजी ने भी किए थे यहां दर्शन :
माना जाता है कि रावण का वध करने के बाद ऋषि कुम्भोदर ने भगवान राम को पाप मुक्ति के लिए हिंगलाज माता (पाकिस्तान) के दर्शन के लिए कहा था। प्रभु सीताजी, लक्ष्मण और हनुमानजी के साथ दर्शन को गए। किंवदंती है कि माता की सेना ने रामजी को सेना सहित रोक दिया था। पूछने पर माता ने कहा, वे तीर्थयात्री की भांति आएं। इसके बाद माता उन्हें सभी पापों से मुक्ति प्रदान करती हैं।
राजस्थान के जोधपुर में हिंगलाज माता का मंदिर है :
चलते हुये चलते हुये भक्त आते है, माता के दरबार में दुःख भूल जाते है : https://www.youtube.com/watch?v=KloC5tU4kkQ
राजस्थान के सीकर जिले के कांवट कस्बे के रेलवे स्टेशन मार्ग पर पहाड़ी पर स्थित अंबिका माता मंदिर 300 साल पुराना है। सालों पूर्व यहां सिंहाजी नाम के गृहस्थ तपोनिष्ठ संत हुए थे। संत सिंहाजी हिंगलाज माता के भक्त थे। कहा जाता है कि सिंहाजी महाराज अपने तप के प्रताप से हिंगलाज माता के दर्शनों के लिए रोजाना हिंगलाज जाया करते थे, लेकिन वृद्धावस्था में माता के दर्शनों के लिए हिंगलाज जाने में असमर्थ होने पर सिंहाजी महाराज ने कांवट में ही दर्शन देने के लिए माता से प्रार्थना की। हिंगलाज माता ने सिंहाजी के तप से प्रसन्न होकर कांवट में स्थित पहाड़ी पर दर्शन देने के लिए कहा। इसके बाद संत सिंहाजी इस पहाड़ी पर तपस्या करने लगे। यहाँ माता की मूर्ति के ऊपर एक चट्टान है, जिसको लेकर मान्यता है कि यह माता की एक अंगुली पर टिकी हुई है।
- हिंगलाज माता मंदिर, जोधपुर रेलवे स्टेशन से 20 किलोमीटर दूर है।
- सालावास रेलवे स्टेशन से मंदिर 3 किलोमीटर दूर है।
- जोधपुर के पावटा बस स्टैंड से 6 नंबर बस सालावास गांव जाती है।
- बस स्टैंड से मंदिर करीब एक किलोमीटर दूर है।
हिंगलाज माता के बारे में कुछ और खास बातें :
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हिंगलाज माता को लाल देवी या हिंगुला की देवी भी कहा जाता है। हिंगलाज माता को आदिशक्ति और देवी पार्वती का रूप माना जाता है। हिंगलाज माता, 52 शक्तिपीठों में से एक हैं। हिंगलाज माता को काठियावाड़ के राजा की कुलदेवी माना जाता है। हिंगलाज माता को माता वैष्णो देवी का अवतार माना जाता हैं। हिंगलाज माता को भारत के कई समुदाय जैसे सिंधी, भावसार, राजपूत, चारण, राजपुरोहित, खत्री, अरोड़ा, डोडिया राजपूत, परजिया सोनी, हिंगू, भानुशाली, लोहाना, बरोट, कापड़ी, वानजा, भद्रेसा, गुर्जर, वाला आदि समुदायों द्वारा कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है।