अलीगढ़ (उ.प्र.) : एक ज़माने में हिन्दुओं ने मुस्लिम समाज से मांग की थी कि हमें सिर्फ अयोध्या, मथुरा और काशी के मंदिरों को लौटा दो, हम अपने बाकी मंदिरों पर अपना अधिकार छोड़ देते है, लेकिन मुस्लिम समाज द्वारा ऐसी मांग को दरकिनार कर दिया गया था, अब हिन्दू लगातार भारत में मंदिरों पर बनी मस्जिदों को लेकर सक्रिय हो गया है और रोजाना हर मस्जिद अथवा दरगाह को लेकर केस कोर्ट में डाले जा रहे है, जिसके बाद हिन्दू और मुस्लिम पक्ष लगातार सामने आ रहे है। वहीँ संभल, बागपत, बदायूं, फिरोजाबाद और बरेली के बाद अब अलीगढ़ कि ऐतहासिक जामा मस्जिद के भी नीचे मंदिर होने का विवाद सामने आ गया है। आरटीआई एक्टिविस्ट पंडित केशव देव गौतम का कहना है 300 साल पुरानी मस्जिद की जगह पहले शिव मंदिर था। इस मस्जिद में 600 किलो सोने का प्रयोग किया हुआ है, जो कि मन्दिर होने की दशा में जड़ा गया होगा।
वहीँ अब इसको लेकर उन्होंने सिविल जज कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। इस मामले में 15 फरवरी को सुनवाई होनी है। जिसके बाद दोनों पक्षों में बयान बाजी भी शुरू हो गई है। याचिका दायर होने बाद अलीगढ़ की जामा मस्जिद चर्चाओं में आ गई है। ऐसे में इतिहासकार प्रोफेसर मोहम्मद वसीम राजा ने और स्थानीय लोगों ने मीडिया से खास बातचीत में जामा मस्जिद के इतिहास के बारे में विस्तार से बताया।
मस्जिद में 17 गुंबद के साथ 3 दरवाजे :
पार्षद मुशर्रफ मेहजर हुसैन ने बताया कि मस्जिद की सबसे खास बात यह है कि यह टीले पर बनी हुई है। ऊंचाई पर बनी होने के कारण अलीगढ़ शहर के हर कोने से यह मस्जिद देखी जा सकती है। 300 साल पहले बनाई गई इस मस्जिद में 17 गुंबद के साथ 3 दरवाजे हैं। मस्जिद के हर दरवाजे पर 2-2 गुंबद हैं। यहां एक साथ लगभग 5 हजार लोग नमाज पढ़ सकते हैं। खासतौर से औरतों के लिए नमाज पढ़ने का यहां अलग से इंतजाम किया गया है। सफेद गुंबदों की संरचना वाली इस खूबसूरत मस्जिद में मुस्लिम कला और संस्कृति की झलक साफ-साफ दिखाई देती है। इसे 600 किलो सोने से जड़ा गया है।
गुंबदों व मीनारों की दीवारों पर 6 क्विंटल जड़ा सोना :
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स्थानीय पार्षद के मुताबिक, अलीगढ़ जामा मस्जिद के गुंबदों और मीनारों के ऊपर सोना मढ़ा हुआ है। स्थानीय लोगों के मुताबिक, इतना सोना एशिया की किसी दूसरी मस्जिद में नहीं लगा है। करीब 8 से 10 फीट लंबी 3 मीनारें मुख्य गुंबद पर लगी हुई हैं। तीनों गुंबद के बराबर में बने एक-एक गुंबद पर छोटी-छोटी 3 मीनारें हैं। मस्जिद के गेट और चारों कोनों पर भी छोटी-छोटी मिनारे हैं। सभी गुंबदों और मीनारों में शुद्ध सोना मढ़ा हुआ है। गुंबद में भी कई क्विंटल सोना मढ़ा हुआ है, हालांकि कितना सोना लगा है, इसका अंदाजा किसी को भी नहीं है। हालाँकि इस सोने की रक्षा करने के लिए कोई चौकीदार तैनात नहीं है। वहीँ अब इस मस्जिद को लेक भी बवाला शुरू हो गया है।
1857 के शहीद मौलानाओं की कब्र :
1857 की क्रांति की यादें भी इस जामा मस्जिद से जुड़ी हुई हैं। यह देश की पहली मस्जिद बताई जाती है, यहां 1857 की क्रांति के शहीदों की 73 कब्रें बनी हैं। इसे गंज-ए-शहीदन यानी कि शहीदों की बस्ती भी कहते हैं। तीन सदी पुरानी इस मस्जिद में कई पीढ़ियां नमाज अदा कर चुकी हैं। इस वक्त मस्जिद में आठवीं पीढ़ी नमाज पढ़ रही है। हालाँकि इस याचिका के बाद मुस्लिम पक्ष ने कई आरोप लगाये है।
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