स्कूल कि आड़ में हो रहा ईसाई धर्म का प्रचार, चर्च संचालन कि सहमति मिली मंत्रालय से, सामने आया ये मामला….।

बतौली : राज्य में धर्मान्तरण चहुँओर जारी है, आये दिन कहीं ना कहीं कोई ना कोई मामला सामने आ ही जाता है। ऐसे ही बतौली विकासखंड के दूरस्थ ग्राम पंचायत तेलाईधार स्थित प्राथमिक/माध्यमिक मिशन शाला में हर रविवार को चर्च का संचालन किया जा रहा है, जिसकी खबर सामने आई है। हैरानी की बात यह है कि यह गतिविधि शासकीय भूमि पर संचालित अर्धशासकीय स्कूल में हो रही है, और इसके बारे में अधिकारियों को कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है, या फिर वे जानबूझकर अंजान बने हुए हैं। इसी कारण निर्भीकता के साथ धार्मिक गतिविधियां भी जारी हैं। जो कि हैरान करने वाली है।

पचास साल पुराना स्कूल, अब धर्म प्रचार का मंच बना?

इस मामले में जानकारी सामने आई है कि तेलाईधार के कोरकोटपारा में संचालित इस मिशन स्कूल की स्थापना लगभग 50 वर्ष पूर्व हुई थी। यह क्षेत्र का एकमात्र स्कूल है जहां कक्षा पहली से आठवीं तक की पढ़ाई होती है। यह स्कूल संकुल केंद्र तेलाईधार के अंतर्गत आता है। यहाँ ईसाई समाज के साथ-साथ हिंदू और अन्य समुदायों के छात्र भी शिक्षा ग्रहण करते हैं। लेकिन अब स्कूल परिसर में हर रविवार खुलेआम चर्च की प्रार्थना सभाएं आयोजित की जा रही हैं, जो कि शिक्षा के मंदिर में चिंताजनक है।

सरकारी जमीन पर मिशन स्कूल, शिक्षकों की भूमिका पर सवाल :

जानकारी में सामने आया है की यह अर्धशासकीय मिशन स्कूल भले ही निजी प्रबंधन के तहत संचालित होता हो, लेकिन इसका संचालन ग्राम पंचायत द्वारा प्रदत्त शासकीय भूमि पर किया जा रहा है। यहाँ प्रधान पाठक शनिलाल तिग्गा के नेतृत्व में पाँच शिक्षक—फूलबशिया एक्का, महिमा तिग्गा, कुसुमपाला सिंह, डेविड एक्का और जूहीरानी कुजूर पदस्थ हैं। स्कूल का पंजीयन क्रमांक 8160/89 है और यह छत्तीसगढ़ शासन द्वारा मान्यता प्राप्त है, जिसका डाइस कोड 2202023606 है। फिर भी, स्कूल में धर्म विशेष के प्रचार और चर्च संचालन को लेकर प्रधान पाठक की भूमिका पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। इस संबंध में बतौली बीईओ शरदचंद्र मेषपाल ने कहा, “स्कूल में चर्च संचालन करना गलत है। मामले की जांच कर प्रधान पाठक से स्पष्टीकरण लेकर आवश्यक कार्यवाही की जायेगी।”

वहीं, स्कूल के प्रधान पाठक शनिलाल तिग्गा का कहना है, “चर्च संचालन की अनुमति हमें छत्तीसगढ़ मंत्रालय से प्राप्त है, इसलिए यह गतिविधि जारी है। एक ओर शिक्षा के अधिकार की बात की जाती है, तो दूसरी ओर स्कूलों को धार्मिक केंद्रों में तब्दील करने का यह चलन न केवल संविधान की धर्मनिरपेक्ष भावना के खिलाफ है, बल्कि स्कूल आने वाले अन्य समुदायों के बच्चों के लिए भी सांस्कृतिक असहजता का कारण बन सकता है। अब देखना यह है कि अधिकारी इस प्रकरण में क्या कदम उठाते हैं। ऐसे में अब इस मामले में बवाल मच गया है।