राम मंदिर पर फहराया धर्मध्वज, प्रधानमंत्री मोदी ने किया संबोधित, जानें राम मंदिर के ध्वज की असली कहानी।

अयोध्या (उ.प्र.) : अयोध्या आज एक बार फिर से सज गई। अयोध्या में स्थित राम मंदिर के शिखर पर पीएम मोदी और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने ध्वजा फहराया। इससे पहले दोनों ने राम मंदिर में रामलला के दर्शन भी किए। धर्मनगरी अयोध्या में राम मंदिर के शिखर पर ऐतिहासिक ध्वजारोहण समारोह कई मायनों में खास है। इस समारोह का केंद्र बिंदु है मंदिर के शिखर पर फहराया जाने वाला भगवा ध्वज। इस पर भगवान राम के सूर्यवंश का प्रतीक सूर्य, ‘ॐ’ और एक खास पौधा ‘कोविदार वृक्ष’ अंकित है। इसको लेकर महत्वपूर्ण जानकारी सामने आई है इस ध्वज की डिजाइनिंग का आधार खोजने वाले भारतविद् (Indologist) ललित मिश्रा ने इस अनूठी खोज की पूरी कहानी बताई है। मिश्रा ने दावा किया है कि इस खोज से न सिर्फ भारत के ध्वज इतिहास को नया आयाम मिला है बल्कि ब्रिटिश वनस्पतिविदों की एक बड़ी वैज्ञानिक त्रुटि भी सुधारी गई है। सामने आई जानकारी काफी हैरानजनक और महत्वपूर्ण है।

कैसे हुई इस ध्वज की खोज? 

इस बारे में ललित मिश्रा ने बताया कि वह मेवाड़ राजवंश की चित्र रामायणों पर एक अलग प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे। उसी दौरान उन्हें एक पेंटिंग में यह विशिष्ट ध्वज दिखा। उन्हें इस ध्वज का कोई उल्लेख अन्य रामायणों में नहीं मिला। केवल वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड के दो अध्यायों में ही इस ध्वज का विस्तृत वर्णन मिला। इसमें विशेष रूप से ‘कोविदार वृक्ष’ का उल्लेख था। जिसको लेकर लगातार खोज की गई।

इस पेड़ की विशिष्टता जानने के लिए उन्होंने आगे शोध किया और संस्कृत के हरिवंश पुराण में उन्हें इसकी पूरी कहानी मिली। ललित मिश्रा के मुताबिक यह कोविदार वृक्ष कोई साधारण पेड़ नहीं है। यह ऋषि कश्यप द्वारा किया गया एक हाइब्रिड (संकर) प्रयोग था। उन्होंने मन्दार वृक्ष के सार को पारिजात वृक्ष के साथ मिलाकर यह विशेष पौधा तैयार किया था। ललित मिश्रा के अनुसार यह दुनिया का सबसे शुरुआती पौधा संकरण प्रयोग हो सकता है। इस तरह यह महत्वपूर्ण जानकारी सामने आई है।

इस कोविदार वृक्ष की वनस्पति पहचान स्थापित करना ललित मिश्रा के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी। ब्रिटिश काल के दौरान, वनस्पतिविदों ने कोविदार और कचनार (एक ही वर्ग के दो पेड़) को एक ही वानस्पतिक नाम “बाहुनिया वैरिगेटा” (Bahunia variegata) दे दिया था। ललिता मिश्रा के मुताबिक यह एक बड़ी भूल थी। लंबी रिसर्च और बीएचयू के वनस्पतिविदों के सहयोग से यह समझा गया कि कोविदार वास्तव में ‘बाहुनिया परप्यूरिया’ (Bahunia purpurea) है। इस खोज ने न सिर्फ प्राचीन परंपरा के ज्ञान को पुनर्स्थापित किया, बल्कि ब्रिटिश वनस्पतिशास्त्री द्वारा की गई वैज्ञानिक गलती को भी ठीक किया है। जो काफी महत्वपूर्ण साबित हुआ है।

ऐसे फाइनल हुई ध्वज की अंतिम डिजाइन :

पौधे की पहचान होने के बाद अयोध्या में कोविदार वृक्ष लगाए गए और फिर ध्वज को अंतिम रूप देने का काम शुरू हुआ। इस ध्वज पर कोविदार वृक्ष की छाप बनाने के लिए कंप्यूटर ग्राफिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग किया गया। भगवान राम सूर्यवंश से संबंधित हैं, इसलिए ध्वज पर सूर्य का प्रतीक भी जोड़ा गया। बाद में कमेटी की सहमति से सूर्य के चारों ओर एक रचनात्मक डिजाइन बनाकर ‘ॐ’ भी लिखा गया। इस ध्वज में अब तीन प्रतीक हैं: ॐ, सूर्य और कोविदार वृक्ष।

गुजरात की पैराशूट बनाने वाली कंपनी ने 25 दिनों में किया तैयार :

यह ध्वज गुजरात की एक विशेष पैराशूट निर्माण कंपनी ने 25 दिनों में तैयार किया गया है। इसे टिकाऊ पैराशूट-ग्रेड कपड़े और प्रीमियम सिल्क के धागों से बनाया गया है। यह 60 किमी/घंटा तक की हवा, बारिश और धूप का सामना करने में सक्षम है। यह भगवा ध्वज 22 फीट लंबा और 11 फीट चौड़ा है।

हम ठान लें तो मानसिक गुलामी से मुक्ति पा लेंगे : पीएम मोदी

वहीँ धर्म ध्वजा को फहराने के मौके पर प्रधानमंत्री उद्बोधन दिया प्रधानमन्त्री मोदी ने कहा, “भगवान राम अपने आप में एक वैल्यू सिस्टम हैं। भारत के हर घर में और हर भारतीय में राम हैं। गुलामी की मानसिकता इतनी हावी हो गई कि प्रभु राम को भी काल्पनिक घोषित किया जाने लगा। अगर हम ठान लें तो मानसिक गुलामी से मुक्ति पा लेंगे। तब 2047 तक विकसित भारत का सपना पूरा होने से कोई रोक नहीं पायेगा।”

“ये धर्मध्वज प्रेरणा बनेगा कि प्राण जाए, पर वचन न जाए अर्थात जो कहा जाए, वही किया जाए। ये धर्मध्वज संदेश देगा – कर्मप्रधान विश्व रचि राखा अर्थात विश्व में कर्म और कर्तव्य की प्रधानता हो। ये धर्मध्वज कामना करेगा – बैर न बिग्रह आस न त्रासा, सुखमय ताहि सदा सब आसा यानी भेदभाव, पीड़ा, परेशानी से मुक्ति और समाज में शांति एवं सुख हो।”