प्रयागराज: जिस अतीक की दहशत से हर कोई डरता था , आज उसका 18 सेकण्ड में अंत हो गया। गैंगस्टर से राजनेता बना था अतीक अहमद, कभी यूपी में उसकी तूती बोलती थी। वह जेल में भी दरबार सजा लेता था और सरेआम लोगों को मौत के घाट उतार देता था। उसपर 101 आपराधिक मुकदमे दर्ज थे। अतीक अहमद को उसके भाई अशरफ के साथ शनिवार को सरेआम पुलिस की मौजूदगी में यूपी के प्रयागराज में उस समय गोली मारकर हत्या कर दी गई मारे गए, जब उन्हें मेडिकल जांच के लिए ले जाया जा रहा था। बता दें कि अतीक अहमद और अशरफ को कोर्ट ने पांच दिनों के लिए पुलिस रिमांड की अनुमति दी थी जिसके बाद दोनों को मेडिकल जांच के लिए ले जाया जा रहा था और दोनों को गोली मार दी गई। यूपी में खौफ का पर्याय रहे अतीक को सरेआम तीन लोगों ने 18 सेकेंड में मौत की नींद सुला दिया। पुलिस ने तीनों हमलावरों को गिरफ्तार कर लिया है और उनसे पूछताछ की जा रही है। इस मुद्दे पर राजनीती भी शुरू हो गई है।
माफिया डॉन से सांसद बना अतीक जाने कहानी :
माफिया अतीक कैसे यूपी का कुख्यात अपराधी बना, उसके राजनीतिक रसूख का कितना असर था, संसद के सदस्य के रूप में कैसे वह राजनीति की ऊंची डगर पर पहुंचा। अतीक अहमद जिसका जन्म 10 अगस्त 1962 को यूपी के श्रावस्ती में हुआ था। उसे पढ़ाई-लिखाई से ज्यादा वास्ता नहीं था। पिता तांगा चलाते थे और उसी आमदनी से किसी तरह से परिवार की जीविका चलती थी। हाई स्कूल फेल होने के बाद उसने पढ़ाई छोड़ दी और 17 साल की उम्र में ही पहली हत्या करने के बाद उसने अपराध की दुनिया में कदम रखा था। यहाँ से उसके डॉन बनने की कहानी शुरू हो गई।
अतीक अहमद को अपराध की दुनिया भाने लगी और 21 साल की उम्र में वह इलाहाबाद के चकिया का नामी गुंडा बन गया था और उसकी वसूली का धंधा चल निकला था। पूर्वांचल और इलाहाबाद में उसके जुर्म की कड़ियां बढ़ती गईं और वह रसूखदार बन गया। अतीक की निजी जिंदगी की बात करें तो उसकी शादी शाइस्ता परवीन से हुई थी, जो उसके जुर्म में बराबर की हकदार थी। फिलहाल वह फरार चल रही है और पुलिस ने उसके ऊपर 50000 रुपये का इनाम रखा है। अतीक और शाइस्ता के पाँच बेटे थे – अली, उमर, अहमद, असद, अहज़ान और अबान। झांसी में शुक्रवार को यूपी पुलिस के साथ कथित मुठभेड़ में अतीक और शाइस्ता का छोटा बेटा असद मारा गया था, जो पिता के जुर्म में भागीदार था।
अतीक अहमद के राजनीतिक जीवन की बात करें तो वह यूपी की विधान सभा का पांच बार सदस्य रहा था और पूर्व संसद सदस्य था। अतीक का भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ भी पूर्व विधायक था। अतीक का राजनीतिक जीवन 1989 में शुरू हुआ जब वह इलाहाबाद, अब प्रयागराज, (पश्चिम) विधायक सीट के लिए एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुना गया था। उसने अगले दो विधान सभा चुनावों में अपनी सीट बरकरार रखी थी और 1996 में, माफिया-राजनेता ने अपना लगातार चौथा कार्यकाल समाजवादी पार्टी के टिकट पर जीता था। सत्ताधारी पार्टी के दम पर वो क्षेत्र का बड़ा माफिया बन गया था, सब तरफ उसकी दहशत थी।
तीन साल बाद, उसने अपना दल (कमेरावाड़ी) के अध्यक्ष बनने के लिए सपा छोड़ दी थी। उसने 2002 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी। लेकिन अगले ही साल वह सपा में लौट गया था। वह 2004 से 2009 तक यूपी के फूलपुर से 14वीं लोकसभा के लिए चुना गया था थे। बता दें कि फूलपुर सीट पर कभी भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का कब्जा था।
अतीक का आपराधिक रिकॉर्ड :
पिछले 40 वर्षों में, राज्य में अतीक से जुड़े 101 आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं। पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक, उसके खिलाफ पहला मर्डर केस 1979 में दर्ज किया गया था। वह हत्या, हत्या के प्रयास, अपहरण, धोखाधड़ी, धमकी और जमीन पर कब्जा करने सहित कई संगीन अपराधों में शामिल था। ये उन केसों की संख्या है जो पुलिस के रेकॉर्ड में दर्ज हुये , कई केसों में तो पीड़ित शिकायत ही नहीं करवा पाये।
अतीक 2005 में बसपा विधायक राजू पाल की हत्या में भी आरोपी था। यह घटना तब हुई जब बसपा विधायक ने अतीक के प्रभाव को चुनौती दी थी और उसके भाई खालिद अजीम के खिलाफ चुनाव जीत गए। इलाहाबाद (पश्चिम) विधानसभा सीट से अतीक के छोटे भाई को हराने के तीन महीने बाद ही उन्हें गोली मार दी गई थी।
अतीक पर गैंगस्टर से राजनेता बने राजू पाल की हत्या के मुख्य गवाह उमेश पाल का अपहरण करने का भी आरोप लगाया गया था और उसे यह दावा करते हुए एक बयान लिखने के लिए मजबूर किया गया था कि जब राजू पाल की हत्या हुई थी तब वह वहां नहीं था और वह गवाही नहीं देना चाहता था। उन्हें 2006 के अपहरण के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
उनके पतन के शुरुआती संकेत 2016 में मिले थे जब उनके सहयोगियों पर प्रयागराज में कॉलेज के कर्मचारियों पर हमला करने का आरोप लगाया गया था, जिन्होंने एक परीक्षा में नकल करने वाले छात्रों के खिलाफ कार्यवाही की थी। अगले साल, अतीक को हिरासत में लिया गया और 2018 में राज्य से बाहर ले जाया गया था और उसे गुजरात के साबरमती जेल में रखा गया था। साबरमती जेल के बाद उसे उमेश पाल हत्याकांड में पूछताछ के लिए प्रयागराज लाया गया था। उसने अपनी हत्या की आशंका जताई थी और शनिवार को उसकी सरेआम हत्या कर दी गई। इस तरह से इस माफिया का दर्दनाक अंत हुआ।