नई दिल्ली : रक्त की जरुरत लोगों को आपात परिस्थिति में पड़ती है, जब किसी का एक्सीडेंट हो गया हो, खून की कमी हो, प्रसवकाल हो, एनीमिया हो, थेलेसिमिया हो, अथवा किसी ऐसी आपात स्थिति में जरूरत पड़ जाती है, जहाँ मरीज की जान खतरे में होती है। मानवता के नाते लोग जरूरत से पहले ही रक्तदान कर ब्लड बैंक में जमा करवा देते है। WHO के अनुसार प्रतिवर्ष भारत में एक करोड़ यूनिट रक्त की जरुरत होती है, और प्रतिवर्ष रक्त की उपलब्धता होती है, लगभग 90 लाख यूनिट।
खून की एक-एक बूंद बेशकीमती होती है क्योंकि ब्लड किसी लैब या फैक्ट्री में नहीं बन सकता। कोई डोनर अपना ब्लड देता है तब जाकर किसी एक इंसान की जान बचती है। अपने देश में हर दो सेकेंड में किसी को खून की जरूरत पड़ती है, लेकिन कई बार खून न मिलने से लोगों की जान चली जाती है।
क्या आपको पता है कि 375 एमएल का एक ब्लड बैग तीन लोगों की जान बचा सकता है। पर हकीकत यह है कि देश में हर साल छह लाख लीटर से अधिक खून बर्बाद हो जाता है। बता दें कि भारत में एक हजार लोगों में से केवल 8 लोग ही स्वैच्छिक रूप से ब्लड डोनेट करते हैं।
ब्लड बैंकों में स्टोरेज की क्षमता कम, नियत समय के बाद खून बर्बाद हो जाता है :
देश में 3840 लाइसेंसी ब्लड बैंक हैं जिनमें से महज 1244 ब्लड बैंक ही सरकारी हैं। यानी 68% से ज्यादा ब्लड बैंक प्राइवेट हैं या फिर एनजीओ चला रहे हैं। सरकारी या प्राइवेट, अधिकतर ब्लड बैंकों में ब्लड स्टोरेज की क्षमता कम है। मैन पावर कम होने से खून की जांच में काफी समय लगता है। नतीजा, डोनेट किए गए खून का एक बड़ा हिस्सा बर्बाद हो जाता है। इसका मुख्य कारण है की रक्त दान होने के बाद वह अगले 30 दिनों के अन्दर ही प्रयोग किया जा सकता है, उसके बाद उसका प्रयोग संभव नहीं है। जबकि दूसरी तरफ ब्लड बैंक रक्त देने के बदले में दबाव देकर रक्तदान करवाते है और पुराने रक्त के प्रयोग करने का समय ख़त्म हो जाता है।
इसलिए जब मेगा ब्लड डोनेशन कैंप लगते हैं तो स्टोरेज की क्षमता से ज्यादा खून जमा हो जाता है जिसे स्टोर करना मुश्किल होता है। पिछले साल 87 हजार से अधिक लोगों ने एक दिन में स्वैच्छिक रक्तदान किया था, लेकिन इसे स्टोर करने के लिए महज 3840 ब्लड बैंक काफी नहीं हैं। रक्त को सहेजने के लिये ब्लड बैंकों के पास पर्याप्त संसाधन नहीं है। ब्लड बैंकों में ब्लड कंपोनेंट्स यानी रेड ब्लड सेल्स, प्लाज्मा और प्लेटलेट्स को अलग करने के लिए मशीनें भी पर्याप्त नहीं हैं। न ही ब्लड को प्रिजर्व करने के लिए टेंपरेचर का एडवांस सेटअप ही है। देश में 1.25 करोड़ यूनिट ब्लड स्टोरेज है, लेकिन डिमांड 1.46 करोड़ यूनिट की है। इसमें से भी करीब 6% ब्लड बेकार हो जाता है। इतने रक्त का नुकसान हो जाता है।
30 दिन बाद या दूषित ब्लड का क्या करते हैं ?
ब्लड बैंकों में टेस्ट के दौरान यदि खून दूषित पाया जाता है तो इसे बैक्टीरिया या वायरस मुक्त किया जाता है। जिस मशीन में दूषित खून को डाला जाता है उसे ऑटोक्लेव मशीन कहते हैं। इसका आकार सिलेंडर जैसा होता है जो किसी प्रेशर कुकर की तरह काम करता है। दूषित खून को इसमें डाला जाता है जिसका तापमान 120 डिग्री सेल्सियस होता है। इसमें आधे से पौन घंटे तक खून को रखने पर यह एक तरह से पाउडर में तब्दील हो जाता है। यह किसी काम का नहीं रहता।
इससे संक्रमण होने का भी खतरा नहीं रहता। बावजूद इसके, इसे एहतियातन उन अस्पतालों या आउटसोर्सिंग एजेंसी को भेज दिया जाता है जहां इंसीनिरेटर होता है। वहां इसे पूरी तरह जला दिया जाता है। इसके बाद इसका काम ख़तम हो जाता है।