रायपुर : रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव पूर्ण हो चुका है, ऐसे में सभी का विश्लेष्ण जारी है, चुनाव में 17 प्रत्याशियों को 100 से भी कम वोट मिले है। इस चुनाव में कुल 30 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे। इनमें कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशी के बीच सीधा मुकाबला था। शेष प्रत्याशियों में अधिकांश निर्दलीय थे, जिन्हें एक-एक वोट के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। निर्दलियों में सबसे अधिक 681 वोट अंकुश बेरिएकर को मिले है। वहीं नोटा को इन सबसे ज्यादा1147 वोट मिले है। वहीँ निर्दलियों में सबसे कम मनीष श्रीवास्तव को 20 वोट मिले है। इस चुनाव में सभी निर्दलियों को मिलाकर कुल 2.36 प्रतिशत मत मिले। वहीं अकेले नोटा को 0.81 प्रतिशत मत मिले। दक्षिण के उपचुनाव में अधिकांश मुस्लिम प्रत्याशी खड़े हुए थे, इनमें से सभी को 200 से कम वोट मिले है। चुनाव के दौरान अधिकांश प्रत्याशियों का प्रचार पूरे शहर में कहीं नहीं दिखा था, सभी ने नामांकन भरकर थोड़ा बहुत ही प्रचार किया।
आपसी संबंधों के आधार पर उन्होंने कुछ वोट बटोरे। एक प्रत्याशी को छोड़कर किसी को भी 500 से अधिक मत नहीं मिले। चार सौ से कम मत पाने वाले प्रत्याशियों में केवल दो हैं, इनमें जीतेंद्र शर्मा और चंद्रप्रकाश करें शामिल हैं। दो सौ से अधिक मत पाने वालों में अखिलेश ब्रम्हदेव शामिल हैं, उनहें 229 वोट मिले है। 200 से कम और 100 तक वोट पाने वाले पांच प्रत्याशी हैं। उसके बाद कोई भी प्रत्याशी 100 का आंकड़ा नहीं छू पाया। सबसे कम 25 वोट रिजवान को मिले। इनमें से अधिकांश प्रत्याशी वोट काटने के लिए ही खड़े थे। आम लोगों के बीच उनके नाम का प्रचार न होने से जान-पहचान वालों के वोट उनके खाते में आए। दक्षिण के उपचुनाव में निर्दलीय प्रत्याशियों ने कुल 3528 वोट बटोरे है।
वहीँ धूम सेना के नीरज सैनी जो शीतला मंदिर पुरानी बस्ती के पुजारी है, उन्होंने अपने वाहन में खुद अकेले ही निरंतर प्रचार किया था, और साथ ही उन्होंने भाजपा – कांग्रेस के प्रत्याशियों की हार के लिये हवन भी किया था। उन्हें कुल 111 वोट ही मिल पाये है।
भाजपा-कांग्रेस को छोड़ शेष जमानत नहीं बचा पाए :
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उपचुनाव में 30 प्रत्याशियों ने किस्मत आजमाई। इनमें से दो को छोड़कर शेष प्रत्याशी जमानत के लिए आवश्यक 10 प्रतिशत वोट भी नहीं पा सके। जिससे उनकी जमानत ही जब्त हो गई। अब उन्हें जमानत राशि भी वापस नहीं मिलेगी। चुनाव के दौरान खर्च का ब्योरा उन्हें देना होगा। चुनाव परिणाम आने के एक माह के अंदर सभी को अपने चुनाव व्यय की पूरी जानकारी निर्वाचन आयोग को देनी होगी। खर्च का ब्योरा न देने पर उन्हें आगे चुनाव लड़ने के लिए प्रतिबंधित भी किया जा सकता है।
नोटा का क्या प्रभाव पड़ता है ?
नोटा का कोई चुनावी मूल्य नहीं होता है, भले ही नोटा के लिए अधिकतम वोट हों, लेकिन अधिकतम वोट शेयर वाला उम्मीदवार तब भी विजेता माना जायेगा। नोटा ने भारतीय मतदाताओं के बीच बढ़ती लोकप्रियता हासिल की है, अगर आपको भी लगता है कि अपने देश में नोटा को अधिक वोट मिलने पर चुनाव रद्द हो जायेगा तो आप गलत हैं। भारत में नोटा को राइट टू रिजेक्ट का अधिकार प्राप्त नहीं हैं। जिसका मतलब यह हुआ कि अगर मान लीजिए नोटा को 99 वोट मिले और किसी प्रत्याशी को 1 वोट भी मिला तो 1 वोट वाला प्रत्याशी विजयी माना जायेगा। साल 2013 में नोटा के लागू होने के बाद में चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया था कि नोटा के मत केवल गिने जाएंगे पर इन्हे रद्द मतों की श्रेणी में रखा जायेगा, इनका कोई महत्व नहीं होगा। इस प्रकार साफ था कि नोटा का चुनाव के नतीजों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।