दुर्ग/भिलाई : चुनावी खर्च पर आयोग कितनी भी पाबंदियां लगा दे, प्रत्याशी आवश्यकता से अधिक ही खर्च करते है, नगर निगम चुनाव में ऐसा पहली बार हो रहा है कि महापौर बनने भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों के आलावा कोई भी चुनाव नहीं लड़ रहा है। हमेशा भाजपा और कांग्रेस के वोट बैंक बिगाड़ने वाले निर्दलीय प्रत्याशियों ने भी इस बार दखल नहीं दिया हैं। इसे लेकर कुछ पुरानी पार्टियों का मत है कि पार्षद से ज्यादा खर्चीला चुनाव महापौर पद का हो गया है। कुछ का कहना है कि राष्ट्रीय पार्टी का हाथ होने पर ही महापौर पद का चुनाव लड़ने का जोखिम उठाया जा सकता है।
चुनाव में खर्च की सीमा अभी सिर्फ पार्षदों के लिए तय की गई है। सरकार ने इस बार आबादी के हिसाब से खर्च की सीमा तय की है। ऐसे नगर निगम जहां 2011 की जनगणना के अनुसार, आबादी 3 लाख से ज्यादा है वहां उम्मीदवार 8 लाख रुपये तक खर्च कर सकते हैं। जिन नगर निगम की आबादी 3 लाख से कम है वहां के उम्मीदवार 5 लाख रुपये तक खर्च कर सकते हैं। वहीं, नगर पालिका के पार्षद 2 लाख और नगर पंचायत में पार्षद पद के उम्मीदवार 75 हजार रुपये खर्च कर सकते हैं। ऐसे में सिर्फ पार्षद चुनाव के प्रत्याशी ही अपने क्षेत्र में लगभग 10 गुना ज्यादा खर्चा छुपाकर कर देते है। एक निर्दलीय प्रत्याशी ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया की विभिन्न कार्यों में ही 5 – 7 लाख रूपये खर्चा हो जाते है, ऐसे में बाकी कामों को करना ही मुश्किल होता है, महंगाई के आधार पर 15 दिन प्रचार का खर्च, कार्यकर्ताओं को खाने – खिलाने के खर्च, बैनर-पोस्टर, प्रचार के सामान, फ्लेक्स और भी बहुत खर्च होते है, कुछ ऐसे खर्च जो सार्वजनिक तौर पर नहीं बताये जा सकते, वो सब मिलाकर काफी खर्चा हो जाता है।
दुर्ग नगरनिगम और विधानसभा क्षेत्र एक है, इसलिए यहां ताराचंद साहू के स्वाभिमान मंच की भी धमक रही है, लेकिन वर्तमान में इसका अस्तित्व नहीं है। इसी तरह बसपा और आप पार्षद प्रत्याशी ही अब तक उतार पाए है। पिछले चुनाव में जोगी कांग्रेस का एक प्रत्याशी प्रकाश जोशी जीते थे, लेकिन वर्तमान में इस पार्टी का विलय कांग्रेस में हो गया है। दुर्ग नगरनिगम में भाजपा और कांग्रेस की लड़ाई को निर्दलीय या अन्य पार्टी सेंध लगाते रहे हैं, लेकिन पहली बार ऐसा हुआ है कि दुर्ग नगर-निगम के साठ वार्ड वाले सीट में भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशी के आलावा कोई चेहरा मैदान में नहीं है। कुल – मिलाकर महपौर चुनाव लड़ना महंगा हो रहा है।
क्या कहते है पुरानी पार्टी के नेता :
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- स्वाभिमान मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजकुमार गुप्ता का कहना है कि वर्ष 2009 में राजेन्द्र साहू इस पार्टी से खड़े हुए थे। उसके बाद एक भी उम्मीदवार खड़े नहीं किए गए। उनका कहना है कि दुर्ग में साठ वार्ड विधायक का क्षेत्र है। उनका कहना है मेयर का चुनाव खर्चीला हो गया है। इसलिए उम्मीदवार नहीं उतरते हैं।
- आप पार्टी के संगठन मंत्री संजीत विश्वकर्मा ने बताया कि मेयर प्रत्याशी की तैयारी थी, लेकिन ऐन समय पर नहीं उतार पाए। हालांकि पार्षद के लिए पन्द्रह प्रत्याशी उतारे गए हैं। सूत्रों ने बताया कि आप मेयर प्रत्याशी तैयार कर चुके थे। आप पार्टी का भी कहना है कि मेयर का चुनाव आर्थिक स्थिति से जटिल हैं।
- इधर बसपा के दुर्ग ईकाई के अध्यक्ष सचिव गवई ने बताया कि दुर्ग निकाय के पार्षद पद के लिए नौ प्रत्यशी उतारे गए हैं, वहीं महापौर का चुनाव से वे भी पीछे हट गए हैं।
2009 में भाजपा से डॉ. शिव कुमार तमेर महापौर निर्वाचित हुए थे। उन्हें भी कांग्रेस के साथ छत्तीसगढ स्वाभिमान मंच के प्रत्याशी राजेन्द्र साहू से कड़ा मुकाबला करना पड़ा था। इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी शंकर लाल ताम्रकार तीसरे नंबर पर रहे थे। उसके बाद 2014 में हुए चुनाव में भाजपा से चन्द्रिका चंद्राकर महापौर निर्वाचित हुई। उन्हें भी त्रिकोणी मुकाबले में निर्दलीय दीपा मध्यानी से कड़ी चुनौती मिली थी। अधिकतर प्रत्याशी सिर्फ दोनों पार्टियों के वोट काटने का ही काम कर पाते है, जीतना आसान नहीं होता है।