मेहमान संपादक/इन्दू गोधवानी : अमर बलिदानी हेमू कालाणी का जन्म अविभाजित भारत के सिन्ध प्रांत के सक्खर जिले में 23 मार्च 1923 को हुआ था। आपके पिताश्री का नाम श्री पेसूमल जी कालाणी एवं माताश्री का नाम श्रीमती जेठीबाई कालाणी था। उनके जीवन का यह अपूर्व संयोग ही है कि अमर शहीद भगत सिंह, शिवराम राजगुरु एवं सुखदेव थापर की शहादत 23 मार्च (1923) को ही हुई थी। वे न केवल एक अच्छे छात्र थे अपितु बहुत अच्छे तैराक, साइकिल चालक और उत्कृष्ट धावक भी थे। वर्ष 1942 में, पूरे अविभाजित भारत के सिन्ध प्रांत में हेमू कालाणी ने अपनी किशोरावस्था में ही अपने साथियों के साथ मिलकर विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया तथा स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने का आग्रह किया।
जब हेमू कालाणी की आयु मात्र सात वर्ष की थी, तब इस अल्पआयु में भारत माता का तिरंगा लेकर अपने मित्रों के साथ अंग्रेजों की बस्ती में जाकर निर्भीक होकर भारत माता को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने की दृष्टि से की जा रही सभाओं की व्यवस्थाओं में उत्साहपूर्व भाग लेते थे। हेमू कालाणी अपनी पढ़ाई-लिखाई पर भी पूरा ध्यान देते हुए एक अच्छा तैराक तथा धावक बनने का प्रयास कर रहे थे। तैराकी की कई प्रतियोगिताओं में तो वे कई बार पुरस्कृत भी हुए थे। बचपन से ही श्री हेमू कालाणी एक कुशाग्र बुद्धि के बालक थे। अंग्रेज अधिकारी जब अपने लाव लश्कर के साथ भ्रमण के लिए निकलते थे, तो लोग भयभीत होकर घरों में बंद हो जाते थे परंतु अदभुत साहसी हेमू अपने दोस्तों के साथ भयमुक्त होकर आजादी के प्रेरक गीत गाते हुए घूमते थे। हेमू कालाणी को केवल 19 वर्ष की अल्प आयु में ही बर्बर अंग्रेज सरकार द्वारा फांसी दे दी गई थी। वे देश के स्वतंत्रता संग्राम के लिए शहीद होने वाले सबसे कम उम्र के क्रांतिकारियों में से एक थे, जब उनके 20वें जन्मदिन से दो महीने पहले ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियों ने उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया था।
भारत वर्ष के साथ ही, सिन्ध प्रांत की जनता ने भी अंग्रेजों के विरुद्ध उग्र आंदोलन की शुरुआत की थी जिससे क्रांतिकारी गतिविधियों में बहुत तेजी आई। हेमू कालाणी भी अन्य कई नवयुवकों के साथ इस आंदोलन से जुड़ गए थे और उन्होंने इस दौर में सिन्ध के वासियों में जोश और स्वाभिमान का संचार कर दिया था। चूंकि हेमू कालाणी अपने बचपन काल से ही सिन्ध प्रांत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के सम्पर्क में रहे थे। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्होंने सक्रिय क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होकर संपूर्ण सिन्ध प्रांत में तहलका मचा दिया था। 1942 में उन्हें अपने साथियों के माध्यम से यह गुप्त जानकारी मिली कि बलूचिस्तान में चल रहे उग्र आंदोलन को कुचलने के उद्देश्य से 23 अक्टूबर 1942 की रात्रि में अंग्रेजों की सेना, हथियारों एवं बारूद से भरी, रेलगाड़ी में सिन्ध प्रांत के रोहड़ी शहर से होकर सक्खर शहर से गुजरती हुई बलूचिस्तान के क्वेटा शहर की ओर जाने वाली है। प्राप्त हुई इस गुप्त सूचना के आधार पर श्री हेमू कालाणी ने अपने कुछ साथियों को इकट्ठा कर आनन फानन में एक योजना बनाई कि किस प्रकार रेल की पटरियां उखाड़कर इस रेलगाड़ी को गिराया जाए ताकि अंग्रेजी सेना का भारी नुकसान हो सके। बस फिर क्या था, रात्रि काल में अत्यंत गुपचुप तरीके से कुछ साथी मिलकर उस स्थान पर पहुंच गए जहां रेल की पटरियों को नुकसान पहुंचाने का निर्णय लिया गया था। वहां पहुंचकर उन्होंने रिंच और हथौड़े की सहायता से रेल की पटरियों की फिशप्लेटों को उखाड़ने का कार्य प्रारम्भ कर दिया।
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अन्य दोनों साथी निगरानी कर रहे थे, रात की निस्तब्धता में हथौड़ा चलाने की आवाजें दूर-दूर तक जा रही थी। पास ही में पुलिस की एक टुकड़ी पहरा दे रही थी। उन्होंने रेल की पटरियों पर किए जा रहे प्रहार की आवाजें सुन ली और वे तुरंत वहां पहुंच गए जिस स्थान पर हेमू कालाणी अपने साथियों के साथ रेल के पटरियों को नुकसान पहुंचाने का कार्य कर रहे थे। पुलिस को आते देख हेमू कालाणी ने अपने दोनों साथियों को तो भगा दिया परंतु हेमू कालाणी पुलिस द्वारा पकड़ लिए गए।
उन्होंने जेल में बड़े कष्ट झेलें लेकिन दोस्तों का नाम नहीं बताया। हेमू कालाणी पर कोर्ट में केस चलाया गया। अंग्रेजी हुकूमत पूछती रह गई प्रलोभन देती रह गई किन्तु हेमु कालाणी जी ने दोस्ती की जिंदा मिसाल प्रस्तुत करते हुए अपने साथियों के नाम इस प्रकार बताए कि मेरा पहला साथी पाना है दूसरा साथी पेंचीस है। और कोर्ट में जब-जब भी उनसे पूछा गया कि आपके साथ और कौन-कौन से साथी थे तो उन्होंने कोर्ट में अपने जवाब में अपने औजारों को ही अपना साथी बताते हुए जवाब दिया कि मेरे साथी तो केवल रिंच और हथीड़ा ही थे। सक्खर की कोर्ट ने हेमू कालाणी को, उनकी मात्र 19 वर्ष की अल्पायु होने के कारण, देशद्रोह के अपराध में आजीवन कारावास की सजा प्रदान की। जब उक्त निर्णय को अनुमोदन के लिए हैदराबाद (सिन्ध) स्थित सेना मुख्यालय में भेजा गया तो सेना मुख्यालय के प्रमुख अधिकारी कर्नल रिचर्डसन ने श्री हेमू कालाणी को ब्रिटिश राज का खतरनाक शत्रु मानते हुए उनकी आजीवन कारावास की सजा को फांसी की सजा में परिवर्तित कर दिया।
हेमू कालाणी की अल्पायु को देखते हुए सिन्ध के गणमान्य नागरिकों ने कोर्ट में एक पिटीशन फाइल की एवं अंग्रेज वायसराय से आग्रह किया कि श्री हेमू कालाणी को दी गई फांसी की सजा को निरस्त किया जाय। अंग्रेज वायसराय ने इस आग्रह को एक शर्त के साथ स्वीकार किया कि श्री हेमू कालाणी रेल की पटरियों को नुकसान पहुंचाने वाले अपने अन्य साथियों के नाम अंग्रेज प्रशासन को बताएं। परन्तु श्री हेमू कालाणी ने वायसराय की इस शर्त को नकारते हुए खुशी खुशी फांसी पर चढ़ जाना बेहतर समझा और इस प्रकार 21 जनवरी 1943 को प्रातः सात बजकर 55 मिनट पर अंग्रेजों द्वारा श्री हेमू कालाणी को फांसी दे दी गई।
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अंत में जब उन्हें फांसी दी गई उस समय उनके शरीर में रक्त़ की मात्रा और उनका वजन बढ़ गया था। इतिहास हेमू कालाणी जैसे वीरों को हमेशा याद रखेगा जो इंकलाब जिंदाबाद और भारत माता की जय के नारे लगाते हुए खुद अपने हाथों से फांसी का फंदा अपने गले में डालकर फांसी के फंदे पर झूल गये। मानी वे फूलों की माला पहन रहे हों। जब फांसी दिए जाने के पूर्व श्री हेमू कालाणी से उनकी अंतिम इच्छा के बारे में पूछा गया तो उन्होंने मां भारती की गोद में पुनः जन्म लेने की इच्छा प्रकट की। मात्र 19 वर्ष की आयु में अमर शहीद श्री हेमू कालाणी का प्राणोत्सर्ग सदैव याद रखा जाएगा एवं अंग्रेजो को भारत से भगाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले जिन हजारों वन्दनीय वीरों को जब जब याद किया जाएगा तब तब उनमें सबसे कम उम्र के बालक क्रांतिकारी अमर शहीद श्री हेमू कालाणी को भी सदैव याद किया जाएगा। उनकी शहादत निश्च़ित रुप से आज़ की युवा पीढ़ी को एक नई दिशा प्रदान करेगी।
समूचा देश आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। इस अवसर पर उन महान क्रांतिकारियों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और शहीदों का स्मरण करना भी बेहद ही ज़रुरी है, जिनकी वज़ह से हम आज़ खुले वातावरण में चैन से बैठकर आज़ादी की सांसें ले रहे हैं। भारत को विदेशी शासन से मुक्त़ कराने के लिए जिन वीर सपूतों ने अपना बलिदान दिया, ऐसे ही नायकों में एक थे क्रांतिकारी अमर शहीद हेमू कालाणी, जो मात्र 19 वर्ष की उम्र में शहीद हो गये थे। हम जब तक अपने वीर शहीदों का स्मरण करते रहेंगे, तब तक हमें आजादी की कीमत याद रहेगी। अविभाजित भारत के सिंध प्रांत के वीर योद्धा अमर शहीद श्री हेमू कालाणी की याद को अक्षुण्ण बनाए रखने के उद्देश्य से एवं उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए उनकी एक आदमकद प्रतिमा स्वतंत्र भारत की संसद में स्थापित की गई है एवं भारत सरकार द्वारा उनकी स्मृति में एक डाक टिकट भी जारी किया गया है तथा देशभर में उनके नाम पर उद्यानों, मार्गों, विद्यालयों, वार्डों, चौक-चौराहों का नामकरण भी किया गया है एवं उनकी प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक अमर शहीद हेमू कालाणी की जयंती पर उनके त्याग और प्राणोत्सर्ग को कोटि-कोटि नमन…!



