मनेन्द्रगढ़ : सूचना के अधिकार के तहत आम आदमी को सरकारी गतिविधियाँ जानने का पूरा अधिकार है ऐसे में राज्य सूचना आयोग ने 1 जनवरी 2020 से 21 फरवरी 2025 तक सूचना के अधिकार के तहत जानकारी नहीं देने वाले 2492 जन सूचना अधिकारियों पर साढ़े 4 करोड़ से अधिक का जुर्माना किया है। इनमें से मात्र 286 अधिकारियों से 42 लाख की वसूली हो पाई है बाकी 2207 अधिकारियों से 5 वर्षों में 4.39 करोड़ रुपए की वसूली नहीं हो पाई है। यह वसूली काफी धीमी हुई है, ऐसे में अधिकारियों का मनोबल बढ़ेगा।
जानकारी के अनुसार, मनेंद्रगढ़ निवासी आरटीआई कार्यकर्ता अशोक श्रीवास्तव ने सूचना के अधिकार के तहत राज्य सूचना आयोग से वर्ष 2020 से लेकर फरवरी 2025 तक की जानकारी मांगी थी। इसके तहत उन्हें राज्य सूचना आयोग ने बताया है कि 1 जनवरी 2020 से 21 फरवरी 2025 तक 2493 जन सूचना अधिकारियों पर सूचना नहीं देने, और जानबूझकर देरी करने या अधिनियम की अवहेलना करने के कारण 4 करोड़ 81 लाख 77 हजार 188 रुपए का अर्थदंड (जुर्माना) लगाया गया। आयोग ने स्पष्ट आदेश दिया था कि इन अधिकारियों से वसूली कर राज्य सरकार के राजकोष में राशि जमा कराई जाए, लेकिन इनमें से मात्र 286 अधिकारियों से 42 लाख 31 हजार250 रुपए की वसूली की गई है। जबकि बाकी 2207 अधिकारी अब तक बचे हुए हैं, जिनसे 4 करोड़ 39 लाख 45 हजार 938 रुपए की वसूली नहीं की गई है। यह राशि सीधा-सीधा सरकार के राजस्व को नुकसान है। वहीँ इससे अधिकारी वर्ग भी निश्चिन्त बैठा है।
प्रशासन की विफलता :
जिस कानून को भ्रष्टाचार के खिलाफ हथियार माना जाता है, उसे खुद अधिकारी मजाक बना रहे हैं। इसमें सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि राज्य सूचना आयोग के आदेश की भी खुलेआम अवहेलना भी की जा रही है। इस मामले में सरकार की जवाबदेही सीधे-सीधे बनती है। वहीँ जुर्माने की वसूली का आदेश राज्य सूचना आयोग ने पारित किया था और उसे लागू करना प्रशासन का कार्य है। यदि अधिकारी आदेश के बावजूद वसूली नहीं कर रहे हैं, तो यह सरकार की प्रशासनिक विफलता और राजस्व संरक्षण में लापरवाही को दर्शाता है। जो कि कहीं ना कहीं भ्रष्टाचार करने वाले अधिकारियों का मनोबल बढ़ा रहा है।
जिम्मेदार अफसरों ने नहीं ली जिम्मेदारी :
राज्य सूचना आयोग ने बार-बार पत्र लिखकर जिम्मेदार वरिष्ठ अधिकारियों, विभाग प्रमुखों, और यहां तक कि सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव तक को इस संबंध में सूचित किया, लेकिन यह पत्र सिर्फ सरकारी फाइलों में धूल खाते रहा। जिन अफसरों पर वसूली की जिम्मेदारी थी, उन्होंने अपनी जवाबदेही से या तो मुंह मोड़ लिया या फिर जानबूझकर टालमटोल करते रहे, अथवा सम्बंधित अधिकारीवर्ग से संथ – गाँठ की है, ऐसे सवाल उठाना लाजिमी है। वहीँ सूचना का अधिकार अधिनियम केवल जानकारी मांगने का नहीं, बल्कि “जवाबदेही तय करने” का कानून है। जब सूचना अधिकारी लापरवाही करते हैं, तो उन पर जुर्माना लगाया जाता है और वसूली की जिम्मेदारी उनके वरिष्ठ अधिकारियों की होती है।
उठने लगे सवाल :
■ क्या सरकार जानबूझकर इन वसूली मामलों को टाल रही है?
■ क्या राज्य सूचना आयोग के आदेश का कोई मतलब नहीं?
■ क्या अफसरशाही इस कानून को अपनी मर्जी से चलाना चाहती है?