इन्दू गोधवानी/मेहमान सम्पादक : भारत उत्सवों का देश है। ऐसा ही एक महत्वपूर्ण त्यौहार जगन्नाथ रथ यात्रा है। यह ओडिशा के पुरी में भगवान कृष्ण के अवतार भगवान जगन्नाथ की श्रद्धा भक्ति में आयोजित किया जाता है।
“जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे।”
भगवान जगन्नाथ स्वस्थ होने पर नेत्रोत्सव के दिन श्रद्धालुओं को दर्शन देते है तत्पश्चात् मौसी के घर “गुंडीचा बाड़ी” जाने की यात्रा प्रारंभ होती है, बिना धातु या कील कांटे निर्मित रथ को ‘‘तुपकी’’ सोने की झाड़ू चलाकर सम्मान किया जाता है, जिसमें क्रमशः बलराम, देवी सुभद्रा और श्रीकृष्ण के तीन अलग-अलग रथ होते है, जिन्हें तालध्वज, पद्म रथ व गरुड़ध्वज कहा जाता है।
इस धार्मिक आयोजन को रथयात्रा महोत्सव, नवदीना यात्रा, गुंडिचा यात्रा या दशावतार के नाम से भी जाना जाता है।
रथ की रस्सी को तो थामेंगे हमारे ये दोनों हाथ,
हमारे जीवन की रस्सी थामे भगवान जगन्नाथ।
जगन्नाथ रथ यात्रा हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को आरंभ होती है और यह रथ यात्रा दशमी तिथि को समाप्त होती है। महाप्रभु भगवान जगन्नाथ के देवशयनी एकादशी को पुन: मुख्य मंदिर लौटने की प्रक्रिया को बहुड़ा यात्रा कहते हैं।
“हे भगवान जगन्नाथ थाम लेना मेरा हाथ
कृपा करना कि मैं भी चलूं आपके रथ के साथ„
भगवान श्रीकृष्ण के अवतार माने जाने वाले भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलराम और अपनी बहन सुभद्रा के साथ हर साल उड़ीसा के पुरी शहर में रथ की सवारी करने निकलते हैं और इस यात्रा को दुनिया भर में रथ यात्रा के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि जगन्नाथजी की रथयात्रा में शामिल होने का पुण्य 100 यज्ञों के बराबर माना जाता है। जानकार बताते हैं कि रथ यात्रा की तैयारी अक्षय तृतीया के दिन से श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के रथों के निर्माण के साथ ही शुरु हो जाती है। यहां पुरी में भगवान जगन्नाथ का 800 साल पुराना मंदिर है और यहां भगवान श्रीकृष्ण जगन्नाथ के रुप में विराजते हैं।
जगन्नाथ के भात को जगत पसारे हाथ :
पद्य पुराण : पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार बहन सुभद्रा ने अपने भाइयों कृष्ण और बलरामजी से नगर को देखने की इच्छा प्रकट की। फिर दोनों भाइयों ने बड़े ही प्यार से अपनी बहन सुभद्रा के लिए भव्य रथ तैयार करवाया और उस पर सवार होकर तीनों नगर भ्रमण के लिए निकले थे। रास्ते में तीनों अपनी मौसी के घर गुंडिचा भी गए और यहां पर 7 दिन तक रुके और उसके बाद नगर यात्रा को पूर्ण करके वापस पुरी लौटे। तब से हर साल तीनों भाई-बहन अपने रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं और अपनी मौसी के घर गुंडीचा मंदिर जाते हैं। इनमें सबसे आगे बलराम जी का रथ, बीच में बहन सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे जगन्नाथ जी का रथ होता है। जब तीनों रथ यात्रा के लिए सजसंवरकर तैयार हो जाते हैं तो फिर पुरी के राजा गजपति की पालकी आती है और फिर रथों की पूजा की जाती है।
जय जगन्नाथ जी जिसका नाम है।
पुरी जिसका धाम है।
ऐसे भगवान को हम सबका प्रणाम है।
श्री महाप्रभु जगन्नाथ, भाई बलभद्र जी और बहन सुभद्रा जी के आर्शीवाद से हम सभी का जीवन सुख..समृद्धि और स्वास्थ्य से परिपूर्ण बना रहे तथा यह रथ यात्रा सम्पूर्ण सृष्टि के लिए खुशहाली का कारक बनें, ऐसी कामना करते है। हम आप सभी के जीवन रथ को श्री जगन्नाथ महाप्रभु का पथ-प्रदर्शन सदैव मिलता रहे। आस्था..भक्ति एवं विश्वास के संगम पूरे विश्व़ में धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व तथा भारतवर्ष की आस्था, आध्यात्मिक चेतना और उत्सवधर्मिता के प्रतीक समस्त जगत के नाथ महाप्रभु जगन्नाथ स्वामी जी के रथयात्रा महोत्सव की आप सभी को कोटिशः शुभकामनाएँ..महाप्रभु भगवान जगन्नाथ स्वामी जी हमारे जीवन रुपी रथ के सारथी बन गंतव्य यात्रा आनंदमय मंगलमय बनाये।।



