रायपुर : स्कूलों में छात्र – छात्राओं के बीच भेदभाव को समाप्त करने के उद्देश्य से एक जैसी ड्रेस पहनने का प्रावधान है, जिससे बच्चों में किसी प्रकार की कोई हीनभावना ना आये। तो वहीँ कई स्कूलों ने ड्रेस कोड के नाम पर पालकों पर जबरदस्ती अतिरिक्त वस्तुयें खरीदने का दबाव बनाते है, जो कि अवैधानिक है, इसके साथ ही ऐसा कोई नियम नहीं है कि उन्हें अपनी धार्मिक मान्यताओं को मानने का कोई अधिकार ना हो , लेकिन निजी स्कूल्प्न द्वारा ऐसे कई कृत्य सामने आ चुके है। इसके अलावा कई मिशनरी स्कूल अपने स्कूलों में भारतीय राष्ट्रगान भी नहीं गाते है, जिससे कई बार बवाल भी हो चुके है। ऐसे में कई मामलों में स्कूलों में विवाद खड़े हो जाते है।
ऐसे ही अब मोवा स्थित आदर्श विद्यालय प्रबंधन में छात्रों की कलाइयों में बंधे कलावा (मौली) और माथे पर टीका लगाए जाने पर आपत्ति जताई थी, जिसको लेकर बवाल हुआ था। उन्हें टीका लगाने से रोकने का मामला सामने आया है। बाल आयोग अध्यक्ष डॉ. वर्णिका शर्मा ने कहा यह कृत्य बच्चों की धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन प्रतीत होता है, जो कि भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के अंतर्गत आता है। ऐसे में स्कूल का यह कृत्य निंदनीय है।
बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने इस प्रकरण को गंभीरता से संज्ञान में लिया है। बालक अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005 की धारा 13 (ज) एवं धारा 14 के अंतर्गत प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए विद्यालय प्रबंधन को निर्देशित किया है कि आयोग कार्यालय में लिखित प्रतिवेदन सहित व्यक्तिशः उपस्थित हों। आयोग बच्चों के हितों और उनके संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए कटिबद्ध है। साथी ही ऐसे किसी भी कार्य के विरुद्ध आवश्यक कार्यवाही करने के लिए संकल्पित है, जो बच्चों की धार्मिक, सामाजिक या मानसिक स्वतंत्रता को बाधित करता हो। ऐसे कृत्यों से बच्चों के मानसिक पटल पर गलत प्रभाव पड़ता है।



