दलाईलामा से बात करने की फ़िराक में चीन, दलाई लामा ने कहा था – चीन से आजादी नहीं चाहते।

देश विदेश : दलाई लामा तिब्बती बौद्ध लोगों के सबसे ऊंचे धर्म गुरु हैं। वह भारत में 1959 से निर्वासन में रह रहे हैं। चीन ने जब तिब्बत को अपने में मिला लिया, तो उसी दौरान दलाई लामा भारत आए थे। 1950 के दशक में, जब चीन ने तिब्बत पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया, तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा को भारत में शरण लेनी पड़ी। दलाई लामा ने तिब्बत के मुद्दे को शांतिपूर्ण ढंग से हल करने के लिए चीन के साथ बीच-बीच में बातचीत की वकालत करने की कोशिश की। उन्होंने पहले अपने वक्तव्य में कहा था कि वो चीन से ज्यादा भारत को पसंद करते है, वो कभी चीन के पास वापस नहीं जायेंगे, लेकिन अब खबर है कि चीन ने उनसे पीछे के दरवाजे से बात की है, जहाँ उनका मन बदल गया है।

चीन ने हाल ही में तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा से संपर्क किया। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के मुताबिक, दलाई लामा ने करीब 1 हफ्ते पहले बताया कि चीनी नेताओं ने उनसे संपर्क किया था। हालांकि, उन्होंने ये नहीं बताया कि ऐसा कब हुआ और उनकी चीन से क्या बातचीत हुई। दलाई लामा ने कहा कि वो हमेशा बातचीत के लिए तैयार हैं। दलाई लामा ने भारत में रहकर तिब्बत की एक सरकार बनाई थी। इसे तिब्बत गवर्नमेंट इन एक्जाइल (TGIE) कहा जाता है। हाल ही में इस सरकार की मंत्री नॉर्जिन डोल्मा जापान की यात्रा पर गई थीं। वहां उन्होंने इस बात की पुष्टि की थी चीन अनौपचारिक तौर पर बैकडोर से दलाई लामा से बातचीत कर रहा है और ये बहुत जरूरी भी है। दलाई लामा अपने रहते हुए तिब्बत की समस्या का जो भी समाधान निकालेंगे उस पर हम सभी लोग सहमत होंगे। इस बात के बाद आगे क्या होगा कहना मुश्किल है, दूसरी तरफ चीन किसी भरोसे के लायक नहीं है।

दलाई लामा बोले – चीन से बातचीत के लिए तैयार :

इससे पहले अपने जन्मदिन के मौके पर दलाई लामा ने कहा था – चीन अब बदल रहा है और मैं उनसे बातचीत के लिए तैयार हूं। तिब्बत की समस्या के हल के लिए जो मुझसे मिलना चाहते हैं वो आ सकते हैं। हम पूर्ण आजादी नहीं चाहते हैं। कई साल पहले हमने फैसला किया था कि हम चीन का हिस्सा बने रहेंगे। अब चीन को भी एहसास हो गया है कि तिब्बती लोगों की भावना बहुत मजबूत है। इसलिए अब वो उनसे डील करने के लिए मेरे पास आ रहे हैं।

एक्सपर्ट्स बोले- ये चीन-तिब्बत के लिए बातचीत का सही वक्त :

चीन में एथनिक पॉलिटिक्स के एक्सपर्ट बैरी सॉटमैन ने पूरे मामले पर कहा- दलाई लामा अपनी उम्र की वजह से अब अलग-अलग देशों की यात्राएं नहीं कर सकते हैं। ऐसे में दोनों पक्षों के लिए ही बातचीत करना जरूरी हो गया है। तिब्बती सरकार के लिए दलाई लामा उनकी सबसे बड़ी ताकत हैं, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्हें पहचान दिलाते हैं। मार्च 1959 आते-आते पूरे ल्हासा में अफ़वाह फैल चुकी थी कि दलाई लामा की ज़िंदगी ख़तरे में है और चीनी उन्हें नुक़सान पहुँचा सकते हैं। बाद में यह अफवाह पुख्ता होती गई।

वहीं बीजिंग के लिए ये सही वक्त है क्योंकि अभी दूसरे वैश्विक मुद्दों के चलते ज्यादातर देशों का ध्यान तिब्बत से हट गया है। तिब्बत काफी समय से पश्चिमी देशों के एजेंडे में नहीं है। एक्सपर्ट के मुताबिक, चीन ये जानता है कि पश्चिमी देश तिब्बत के लिए जो कर रहे हैं उसका एक बड़ा कारण दलाई लामा हैं। ऐसे में आने वाले समय में तिब्बत में उनका दखल कम हो सकता है। सॉटमैन ने कहा- अगर चीन अपने पक्ष में नेगोसिएशन चाहता है तो ये उसके लिए दबाव बनाने का सही समय है।

साल 1959 में चीन ने मनमाने ढंग से तिब्‍बत पर कब्‍जे का ऐलान कर दिया। इसके बाद भारत की तरफ से एक चिट्ठी भेजी गई जिसमें चीन को तिब्‍बत मुद्दे में हस्‍तक्षेप का प्रस्‍ताव दिया था। चीन उस समय मानता था कि तिब्‍बत में उसके शासन के लिए भारत सबसे बड़ा खतरा है। वर्ष 1962 में चीन और भारत के बीच युद्ध की यह एक अहम वजह थी।

मार्च 1959 में दलाई लामा चीनी सेना से बचकर भारत में दाखिल हुए। वो सबसे पहले अरुणाचल प्रदेश के तवांग और फिर 18 अप्रैल को असम के तेजपुर पहुंचे। दलाई लामा के भारत आने को आज भी दोनों देशों के रिश्‍तों में एक अहम और नाजुक मोड़ माना जाता है। चीन ने उस समय दलाई लामा को शरण दिए जाने पर भारत का कड़ा विरोध किया था। इसी का बदला लेने के लिए चीन ने भारत पर 1962 में हमला किया था। तब से वो निर्वासित जीवन जी रहे है।

खुद अगला दलाई लामा चुनना चाहता है चीन :

चीन से तनाव के बीच मार्च 1959 में दलाई लामा सैनिक के वेश में तिब्बत से भागकर भारत आ गए थे। वे पिछले 64 साल से हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में रह रहे हैं। चीन लगातार उन्हें अलगाववादी और तिब्बत के लिए खतरा बताता रहा है। 2011 में चीन के विदेश मंत्रालय ने घोषणा की थी कि वो सिर्फ उसी दलाई लामा और पंचेन लामा को मान्यता देंगे जिसे चीन की सरकार अप्रूव करेगी।

हालांकि, दलाई लामा ने कहा था कि तिब्बत को अगला धर्मगुरु भारत में भी मिल सकता है। 2002 से 2010 तक, दलाई लामा के प्रतिनिधियों और चीनी सरकार ने नौ दौर की बातचीत की, जिससे कुछ परिणाम भी निकले। हालांकि, उसके बाद से दोनों पक्षों के बीच कोई ऑफिशियल मीटिंग नहीं हुई है।