राजधानी में एनआइटी के प्रोफेसर और चार छात्रों की टीम ने मिलकर तैयार की ऐसी मशीन, जो कोमा में गए मरीजों का पढ़ेगी दिमाग

रायपुर। एनआइटी रायपुर के प्रोफेसर और चार छात्रों की टीम ने मिलकर ऐसी मशीन तैयार की है, जो 99 फीसद तक कोमा में गए मरीजों के दिमाग में क्या चल रहा है, उसे पढ़ सकेगी। पी-300 ईईजी स्पेलर नामक इस मशीन में देवनागरी लिपि के अक्षरों और दैनिक उपयोग की चीजों की आकृतियों को इंस्टॉल किया गया है। मरीज को16 इलेक्ट्रोड वाली टोपी पहनाकर मशीन शुरू करने पर वह जिस चीज के बारे में सोचता है, वह शब्द और आकृति के रूप में स्क्रीन पर आ जाती है। डॉक्टरों के लिए यह मशीन किसी वरदान से कम साबित नहीं होगी। इस मशीन पर लगातार काम चल रहा है। अभी 2 सेकेंड के अंदर यह मशीन अपना रिजल्ट दे रही है।

ब्रेन स्ट्रोक अथवा किसी दुर्घटना में सिर में चोट लगने से व्यक्ति कोमा में चला जाता है। दिमाग को छोड़ शरीर के सभी अंग काम करना बंद कर देते हैं। ऐसे मरीजों का इलाज करना आसान नहीं होता। वह क्या सोच रहा है, क्या महसूस कर रहा है, क्या चाह रहा है, आदि का पता नहीं चल पाने की वजह से काफी दिक्कत आती है। ऐसे में यह मशीन दिमाग को पढ़ने में सफल साबित हुआ है। टीम के लीडर इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के एचओडी डॉ. नरेन्द्र लोढे हैं। छात्र राहुल कुमार चौरसिया, डॉ. मितुल कुमार अहीरवार, धनश्याम क्षीरसागर और सुबोजीत घोष बतौर सहयोगी हैं

सामग्री और इंस्टॉल चीजें

दो कंप्यूटर स्क्रीन, 16 इलेक्ट्रोड वाली एक टोपी, एक ईईजी मशीन। पी-300 ईईजी स्पेलर मशीन में देवनागरी लिपि के 52 अक्षर, शून्य से नौ तक के अंक, दैनिक उपयोग में आने वाली पांच प्रमुख चीजों की आकृतियां, 20 प्रमुख शब्द के अलावा 64 अन्य चीजों की आकृतियां इंस्टॉल हैं।

कार्यप्रणाली

कंप्यूटर की एक स्क्रीन पर 52 अक्षर नजर आते रहते हैं। मरीज उन अक्षरों को देखते हुए जिन चीजों के बारे में सोचता है, 300 मिली सेकंड में उन अक्षरों से जुड़कर बनने वाला शब्द दूसरे कंप्यूटर की स्क्रीन पर आ जाता है। उस चीज की आकृति भी स्क्रीन पर उभर आती है। उदाहरणार्थ मरीज को यदि भूख लगी हो और वह खाने-पीने की चीजों के बारे में सोच रहा है, तो स्क्रीन पर वो शब्द और आकृति आ जाएगी। इससे डॉक्टर आसानी से जान जाता है कि मरीज के दिमाग में क्या चल रहा है। इतना ही नहीं, इस मशीन में मरीज के परिजनों का मोबाइल नंबर भी अपलोड कर दिया जाता है, जिससे एसएमएस के जरिए स्क्रीन पर चल रहा संदेश उस तक पहुंचता रहता है।

पेटेंट की तैयारी

डॉ. लोढे ने बताया कि देवनागरी में संदेश देने वाली यह देश की पहली मशीन है। इस पर अब तक दो पीएचडी भी हो चुकी है। अब इस मशीन को पेटेंट कराने की तैयारी है।