डीएमएफ घोटाला : ईडी के निशाने पर कई रसूखदार, माया-रानू के बाद अब आगे कौन होगा गिरफ्त में?

रायपुर : डीएमएफ एक गैर-लाभकारी ट्रस्ट है जिसकी स्थापना खनन कार्यों से प्रभावित लोगों के हित और लाभ के लिए काम करने के लिए की गई है। प्रवर्तन निदेशालय ने जिला खनिज न्यास घोटाले की जांच में तेजी लाते हुए आदिवासी विकास विभाग की सहायक आयुक्त माया वारियर और निलंबित IAS रानू साहू को गिरफ्तार किया है। ED के अनुसार, DMF की टेंडर राशि का 25-40% सरकारी अधिकारियों को कमीशन के रूप में दिया गया था। 

प्रवर्तन निदेशालय ने जिला खनिज न्यास घोटाले के मामले में कार्यवाही तेज कर दी है। बीते दो दिनों के भीतर आदिवासी विकास विभाग की सहायक आयुक्त माया वारियर और निलंबित आईएएस रानू साहू को गिरफ्तार किया जा चुका है। अब जांच एजेंसी के निशाने पर एक दर्जन से अधिक अधिकारी और कारोबारी हैं, जिन पर जल्द ही शिकंजा कसा जाएगा। ये सभी घोटाले पूर्ववर्ती के समय से जुड़े हुये है, जिन पर लगातार कार्यवाही हो रही है।

लगभग 300 करोड़ के डीएमफ घोटाले की जांच कर रही ईडी ने विशेष कोर्ट को बताया है कि डीएमएफ की टेंडर की राशि का 25-40 प्रतिशत तक सरकारी अफसरों को कमीशन के रूप में दिया गया है, वहीँ इसमें सैकड़ों करोड़ के घोटाले को लेकर ईडी की कार्यवाही जारी है। ईडी की जांच में यह भी सामने आया है कि टेंडर पाने के लिए राज्य के अधिकारियों, प्रभावशाली राजनेताओं को रिश्वत दी गई है। ईडी के सूत्रों के अनुसार माया वारियर, रानू साहू से पूछताछ में घोटाले से संबंधित कई राज खुलेंगे। इसके आधार पर ही अधिकारी-कर्मचारी समेत अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी भी होगी।

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डीएमएफ घोटाले की जांच कर रही ईडी के हाथ यह भी दस्तावेज लगे है कि प्राइवेट कंपनियों के टेंडर पर 15 से 20 फीसदी अलग-अलग कमीशन सरकारी अधिकारियों ने लिया है। टेंडर करने वाले संजय शिंदे, अशोक कुमार अग्रवाल, मुकेश कुमार अग्रवाल, ऋषभ सोनी और बिचौलिए मनोज कुमार द्विवेदी, रवि शर्मा, पियूष सोनी, पियूष साहू, अब्दुल और शेखर के साथ मिलकर अन्य ने किसी चीज की मूल कीमत से ज्यादा बिल का भुगतान किया था। टेंडर देने के नाम पर अधिकारियों सारे नियमों को दरकिनार कर दिया गया था, जबकि डीएमएफ राज्य के हर जिले में स्थापित एक ट्रस्ट है और खनन गतिविधियों से प्रभावित लोगों के लाभ के लिए खनिकों द्वारा वित्त पोषित है।

टेंडर के लिए रिश्वत लेने का आरोप :

ईडी ने इस साल मार्च में आरोप लगाया था कि छत्तीसगढ़ में डीएमएफ से जुड़े खनन ठेकेदारों ने आधिकारिक काम के टेंडर पाने के लिए राज्य के अधिकारियों और राजनीतिक कार्यकारियों को भारी मात्रा में अवैध रिश्वत दी है। यह लगभग 600 करोड़ से उपर का प्रथम दृष्टया घोटाला है। माया वारियर कोरबा में डीएमएफ के तहत स्वीकृत होने वाले काम की प्रमुख कर्ताधर्ता थीं जबकि रानू साहू कलेक्टर थी। विशेष कोर्ट ने दोनों को 22 अक्टूबर तक ईडी की रिमांड पर सौंपा है। वहीँ अब इस मामले में बड़े कई रसूखदारों के नाम भी सामने आने की सम्भावना है।

संगठित तरीके से घोटाले को दिया अंजाम :

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ईडी ने कोर्ट में यह तर्क पेश किया कि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में रानू साहू कोयला समृद्ध कोरबा जिले में मई 2021 से जून 2022 तक कलेक्टर थीं। उस समय माया वारियर को आदिवासी विकास विभाग में उन्होंने ही अगस्त 2021 से मार्च 2023 तक तत्कालीन सहायक आयुक्त के पद पर पदस्थापना कराई थी। इस दौरान दोनों ने संगठित तरीके से डीएमएफ में अनियमितताओं को बढ़ावा देकर घोटाले को अंजाम दिया था। एजेंसी ने इस मामले में एक मार्च को राज्य में 13 स्थानों पर छापेमारी की थी और डिजिटल, कागजी दस्तावेजों के साथ जेवर, 27 लाख रुपए नकदी समेत 2.32 करोड़ रूपये की संपत्ति जब्त किया था। अब इसी मामले को लेकर अन्य लोगों के शामिल होने के लिये ईडी ने आवश्यक कार्यवाही की बात कही है।