अल्पुझहा (केरल) : देशभर में समान नागरिक संहिता (UCC) पर चल रही बहस के बीच सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से एक सवाल पूछा है कि क्या मुस्लिम परिवार में जन्मा व्यक्ति संपत्ति के मामले में धर्मनिरपेक्ष कानूनों का पालन कर सकता है या मुस्लिम पर्सनल लॉ शरिया का पालन करने के लिए बाध्य है। इसका जवाब देश की शीर्ष न्यायालय सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से मांगा है। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना की अगुवाई वाली बेंच ने केंद्र को जवाब दाखिल करने के लिए चार हफ्ते का समय दिया है। वहीँ इस मामले को मई के दूसरे सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट इस मामले में सुनवाई करेगा।
सामने आया ये पूरा मामला :
इस मामले में याचिकाकर्ता केरल के अलप्पुझा की साफिया पी.एम. नाम की महिला है। उसका कहना है कि उसका परिवार और वह नास्तिक है, लेकिन शरीयत के प्रावधान के चलते एक पिता चाह कर भी अपनी बेटी को 1 तिहाई से अधिक संपत्ति नहीं दे सकते हैं। बाकी संपत्ति पर भविष्य में पति के भाइयों के परिवार का कब्जा हो जाने की आशंका है। याचिका दाखिल करने वाली साफिया और उसके पति नास्तिक हैं, लेकिन जन्म से मुस्लिम होने के चलते उन पर शरीयत कानून लागू होता है। याचिकाकर्ता का बेटा डाउन सिंड्रोम नाम की बीमारी के चलते असहाय है, उसे इलाज की सख्त जरूरत है। बेटी उसकी देखभाल करती है। शरीयत कानून में बेटी को बेटे से आधी संपत्ति मिलती है। ऐसे में पिता बेटी को 1 तिहाई संपत्ति दे सकते हैं, बाकी 2 तिहाई उन्हें बेटे को देनी होगी। अगर भविष्य में पिता और भाई की मृत्यु हो जायेगी तो भाई के हिस्से वाली संपत्ति पर पिता के भाइयों के परिवार का दावा बन जायेगा।
सफिया ने अपनी याचिका में कहा है कि वह और उसके पति मुस्लिम नहीं हैं, इसलिए उन्हें भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के दिशा-निर्देशों के अनुसार संपत्ति का बंटवारा करने की अनुमति दी जानी चाहिए। वर्तमान में भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम मुसलमानों पर लागू नहीं होता। साफिया की याचिका में इसे चुनौती दी गई है। जिसको लेकर कोर्ट भी दुविधा में है।
इस मामले में याचिकाकर्ता की दलील है कि संविधान का अनुच्छेद 25 लोगों को अपने धर्म का पालन करने का मौलिक अधिकार देता है। यही अनुच्छेद इस बात का भी अधिकार देता है कि कोई चाहे तो नास्तिक हो सकता है इसके बावजूद सिर्फ किसी विशेष मजहब को मानने वाले परिवार में जन्म लेने के चलते उसे उस मजहब का पर्सनल लॉ मानने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए, मतलब मुस्लिम पर्सनल लॉ को लेकर उन्होंने अपना विरोध जाहिर किया है। वहीँ इस मामले में वकील ने यह भी कहा था कि अगर याचिकाकर्ता और उसके पिता लिखित में यह कह देंगे कि वह मुस्लिम नहीं है, तब भी शरीयत के मुताबिक उनकी संपत्ति पर उनके रिश्तेदारों का दावा बन जायेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने ये कहा?
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सीजेआई संजीव खन्ना की अध्यक्षा वाली बेंच के समक्ष एसजी तुषार मेहता ने कहा कि एक महिला, जो शरिया नहीं मानती, यह उसका नीजी मसला है। सीजेआई ने कहा कि यह सभी धर्मों पर लागू होगा। आपको एक जवाब दाखिल करना होगा, अगर हम कोई आदेश पारित करते हैं तो आपको अनुमति देने के लिए कई फॉर्म आदि होने चाहिए। एसजी ने कहा कि सही है, मैं अपने धर्म का उल्लेख नहीं करूंगा। एसजी ने कहा कि दिलचस्प बात यह है कि उनकी केवल एक बेटी है और वह पूरी संपत्ति बेटी को देना चाहती हैं, लेकिन शरीयत कानून केवल 50% की अनुमति देता है।
शरीयत एक्ट की धारा 3 में क्या प्रावधान है?
दरअसल, शरीयत एक्ट की धारा 3 में प्रावधान है कि मुस्लिम व्यक्ति को यह घोषणा करता है कि वह शरीयत के मुताबिक उत्तराधिकार के नियमों का पालन करेगा, लेकिन जो ऐसा नहीं करता, उसे ‘भारतीय उत्तराधिकार कानून’ का लाभ नहीं मिल पाता, क्योंकि उत्तराधिकार कानून की धारा 58 में यह प्रावधान है कि यह मुसलमानों पर लागू नहीं हो सकता। इस तरह से महिला बच्चे की बीमारी के कारण परेशान है और भारतीय कानून के अनुसार वह अपना अधिकार चाहती है, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार से जवाब माँगा है।