कैसे कोई किसी को ब्लैकमेल कर सकता है, बिना कारण डराने का खेल कर सकता है?

जवाहर नागदेव (वरिष्ठ पत्रकार) : फिल्म अमर अकबर एंथोनी याद है न। इसमें का एक गाना है हीरोईन के बाप को देखकर हीरो गाता है ‘साठ बरस की उमर में ऐसे चेहरा किसी का खिलता है,  हमको है मालूम किसी से छिपकर ये भी मिलता है…. मैं नाम बताउं ?

अपनी पोल खुलते देख हीरोईन का बाप डर जाता है और कहता है ‘ना जी, ना जी, ना जी’ ‘तस्वीर दिखाउं…?’ ‘ना ना ना ना नाजी… | फिर हीरो गाता है ‘डर गया वो कैसे, बाजार में ऐसे…..’। बस इसी तरह हीरो हीरोईन के बाप को डराने की कोशिश करता है। यदि बाप का किसी और से अफेयर नहीं होता तो वो भला हीरो से क्यों डरता ? बस इतनी सी बात है। डरता क्यों है इंसान जब किसी न किसी कोण से कमजोर, पापी, बेईमान होता है।

होता नहीं आधार , फाईल कैसे होती तैयार :

सौम्या चौरसिया और उनके अन्य आठ लोगों के खिलाफ ईडी ने साढ़े पांच हजार पन्नों की चार्जशीट दाखिल की है। बड़े लोग बड़ी ताकत, बड़ी बातें, बड़ा भ्रष्टाचार 170 करोड़ की बेईमानी बेईमानी तो बेईमानी होती है लेकिन छोटी-मोटी बेईमानी के लिये छोटी सजा होती है बड़ी के लिये बड़ी कांग्रेस का कहना है कि ये कार्यवाहियां चुनाव तक चलेंगी। डराने के लिये चुनाव थमेगा तो ये डराना भी थम जाएगा।

साफ तौर पर कांग्रेस द्वारा ये ब्लैकमेलिंग का आरोप है कि भाजपा कहती है कि आप हमारे साथ मिल जाओ या फिर जेल जाओ। ऐसा कांग्रेस का कहना है। अब यहां प्रश्न ये उठता है कि देश के कोने-कोने से बड़े लोग घरे जा रहे हैं और पहले भी पकड़ाए हैं। क्या ये इतने कमजोर लोग हैं कि ईडी आराम से इनके गिरेहबान में हाथ डाल दे। कतई नहीं….. अलबत्ता ये इतने पावरफुल लोग हैं कि बिना कारण के कोई इनके साथ बदसलूकी कर दे यमासूम का करेगा मानमर्दन खुद की भी फंसेगी गर्दन

यदि ये मान लिया जाए कि भाजपा सरकार के इशारे पर ये कार्यवाहियां हो रही हैं तब भी बिना किसी आधार के कोई अफसर इतनी बड़ी रिस्क कैसे लेगा ? जबकि मासूम / निरपराध पाए जाने पर यदि कोई उलट कार्यवाही करेगा तो इसका असर केवल उस अफसर पर ही होगा न कि भाजपा के किसी नेता या केंद्र सरकार के किसी बाशिंदे पर। और फिर बिना आग के कभी धुंआ निकलता है कभी….. ? कभी नहीं ये जो पांच हजार पन्ने रंगे गये हैं क्या ये निराधार होंगे ? कैसे कह सकते हैं कि चुनावी कार्यवाही है। चुनाव तक मासूम लोगों को डराने के लिये की कार्यवाही की जा रही है तो निस्संदेह आरोपी कहीं न कहीं गलत होगा ।

जब कोई ‘बेईमानी या पाप करता हैं तभी तो ईडी, सीबीआई को मौका मिलता है न उसे धमकाने का । अगर वह ऐसा कुछ करता ही नहीं कि किसी से डरना पड़े तो फिर कोई कैसे उसे ब्लैकमेल कर सकता है। बहुत सहज रूप से कोई कह देता है कि ब्लैक मेल करता है। ये पत्रकारों के लिये कॉमन है। तो भैया आप क्या करते हो कि उसे आपको ब्लैकमेल करने का मौका मिला। काफी समय पहले एक रेंजर ने शिकायत की कि उसे एक लड़की ब्लैकमेल कर रही है। और वो लड़की उसे ब्लैकमेल करके लाखों रूपये उगाह चुकी है। तो भैया आप ने ऐसी क्या काली करतूत की है कि अपना नाम बचाने के लिये आपको उसे पैसे देने पड़ रहे थे । कहते हैं लड़की ने उसे प्यार के चक्कर में फंसा लिया और फिर पैसे वसूलने लगी । भैया जब आप परिवार वाले हो तो आपने उस लड़की के प्यार को स्वीकार किया फिर उसके साथ रहे तो क्या आप खुद को पाक-साफ कह सकते हो?

काला धन बनाना और आरोप लगाना, फिर कहते है पत्रकार ब्लैक मेल करता है :

आम धारणा है कि नेता और अफसर पत्रकारों को पटा कर रखते हैं। कोई पैसों से पटाता है कोइ अन्य सुविधायें- सेवायें देकर , कारण क्या है ? नेता राजनीती में रहकर काला-पीला करते हैं और अफसर तो माशा अल्ला…. । फिर चिल्लाते हैं ‘ब्लैकमेल करते हैं पत्रकार…। अब जब से ईडी आई है तो कहा जा रहा है ईडी के कंधे पे बंदूक रख कर भाजपा नेताओं को ब्लैकमेल कर रही है। तो भैया आईदा ऐसा कोई काम करना ही मत कि कोई आपको ब्लैकमेल कर सके।

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