रेलवे/रायपुर : जब कोई यात्री अपना सामान रेलयात्रा के दौरान भूल जाता है तो रेलवे हर महीने वह सामान नीलाम करता है। यह सामान अक्सर पुराना या फिर खराब कंडीशन में ही रहता है। रेलवे ने रायपुर में सोमवार को भी ऐसी नीलामी रखी। इसमें की-पैड वाले बेहद पुराने मोबाइल फोन के कुछ कवर, बच्चों के पुराने खिलौने और थैलियां-पकड़े समेत 9 सामानों को निकाला गया था। सामान बहुत थोड़ा और पुराना था, अफसरों को पता था कि बिकना मुश्किल है, फिर भी रेलवे ने नीलामी की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अपने एकाउंटेंट इंस्पेक्टर, कामर्शियल इंस्पेक्टर, पार्सल इंचार्ज और रेल पुलिस अफसर को नीलामी ड्यूटी पर लगा दिया। चार पार्टियां भी आईं, लेकिन रेलवे का नियम है कि कम से कम 6 पार्टियां आनी चाहिए। जिसके कारण रेल्वे सामान बेच भी नहीं पाया।
बची हुई पार्टियों के लिए अफसर दिनभर इंतजार करते रहे। देर शाम कोई नहीं आया, जो लोग आए थे उन्होंने सामान खरीदने में रुचि नहीं दिखाई तो रेलवे अफसरों ने शाम नीलामी की तारीख 22 जून यानी एक माह के लिए बढ़ा दी। अर्थात, उस तारीख को इसी सामान से साथ चार अफसर फिर दिनभर बैठेंगे। उन अफसरों का समय फिर जाया होगा।
पार्टियाँ दो सामान देखकर ही लौट गईं। अफसर दिनभर इंतजार करते रहे कि शाम तक छह पार्टियां आ जाएंगी और सामान नीलाम हो सकेगा। कोई नहीं आया तो नीलामी 22 जून के लिए आगे होगी। रेलवे अफसरों की मानें तो रेलवे की इस नीलामी प्रक्रिया में भाग लेने के लिए संबंधित पार्टी को 2 हजार रुपए पार्सल कार्यालय में जमाकर रजिस्ट्रेशन कराना पड़ता है। नीलामी प्रक्रिया खत्म होने के बाद रेलवे रजिस्ट्रेशन फीस वापस कर देता है।
रायपुर रेलवे मंडल के अंतर्गत आने वाले रायपुर, दुर्ग, भाटापारा जैसे बड़े स्टेशनों पर मुसाफिरों के खोए हुए सामानों की हर माह अलग-अलग तारीख को पार्सल विभाग द्वारा नीलामी होती है। रायपुर पार्सल कार्यालय में 22 तारीख को सामानों की नीलामी रखी जाती है। इसमें साइकिल रिक्शा, साइकिल, प्लास्टिक ट्रे, की पैड मोबाइल बैटरी, 12 नग कपड़े, बैग, प्लास्टिक का खिलौना, आयरन राड आदि सामानों नीलामी होनी थी। जो नहीं हो पाई।
आय से ज्यादा खर्च होता है, पर नियम तो मानना पड़ेगा :
रेलवे रायपुर में मिले सामान की नीलामी तीन महीने बाद कर रहा था। इससे पहले, फरवरी में इसी तरह के सामान की नीलामी की गई थी, लेकिन मात्री ज्यादा था। दिनभर नीलामी प्रक्रिया चलाकर रेलवे को 6129 रुपये मिले थे। उसके बाद मार्च माह की नीलामी के दौरान पार्टियों ने भाग नहीं लिया था। अप्रैल माह में 22 तारीख को त्योहार होने के कारण नीलामी टाल दी गई थी। सोमवार को तीन माह बाद नीलामी रखी गई थी। जितने में सामान नहीं बिकता उतने तो सरकारी मशीनरी उसके पीछे लग जाती है।
3 माह सामान रखकर निकालते हैं वैल्यू, फिर करते हैं नीलामी :
रेलवे स्टेशन या फिर ट्रेन में मिलने वाले सामानों का रेलवे तीन महीने तक इंतजार करता है। तीन माह बीत जाने के बाद कामर्शियल और एकाउंटेंट अफसर सामानों की मार्केट वैल्यू निकाली जाती है। उसके बाद उसकी बोली लगती है। नीलामी के दौरान सबसे ज्यादा बोली लगाने वाले को सामान मिलता है। रायपुर पार्सल कार्यालय में पिछले एक साल में सामानों की नीलामी से रेलवे को मात्र 50 हजार का ही राजस्व प्राप्त हुआ है।