एम्स के मरीजों को भेजा जा रहा अम्बेडकर और डीकेएस अस्पताल, एम्स की लगातार गिर रही है साख। 

रायपुर : जिस उद्देश्य को लेकर अटल सरकार ने देश वासियों को सस्ता और बेहतर इलाज देने के लिये एम्स की स्थापना की थी, लगता है वह पूरा नहीं हो रहा है, लम्बी वेटिंग के बाद मरीजों को अस्पताल में एडमिट होने के लिये कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है, वहीँ इलाज करवाने को लेकर भी मरीज परेशान रहते है। उच्चतम स्तर के उपचार की आस लिए मरीज अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान पहुंच रहे हैं, मगर उन्हें आंबेडकर और डीके अस्पताल का रास्ता दिखाया जा रहा है। प्रतिदिन तीन हजार से ज्यादा ओपीडी का दावा करने वाला एम्स प्रबंधन रोजाना पांच से दस मरीजों को दोनों अस्पतालों में भेज रहा है। इसके लिए बेड फुल होने का एकमात्र हवाला दिया जा रहा है। आंबेडकर और डीके अस्पताल से जुड़े चिकित्सक बताते हैं कि कोई दिन ऐसा नहीं जाता, जब जगह नहीं होने की समस्या लेकर गंभीर स्थिति वाले मरीज आगे इलाज के लिए अस्पताल नहीं आते। उनकी स्थिति जैसी भी हो, उन्हें उपचार के लिए यहां दाखिल करना पड़ता है। रेफर किए जाने वाले सामान्य स्थिति के साथ वेंटिलेटर वाले मरीज भी होते हैं। 

एम्स के मरीजों को दोनों अस्पताल भेजने की समस्या सालों पुरानी है, वहीँ जहाँ आंबेडकर अस्पताल को लेकर इलाज की खामियों की बात कही जाती है, जबकि राज्य में सबसे बेहतर इलाज आम्बेडकर में हो रहा है, गरीब मरीजों और आपातकालीन मरीजों को तुरंत और बेहतर इलाज मिल जाता है। वहीँ पहले भी एम्स में इसकी वजह मरीज ज्यादा और बेड कम होना बताया जाता था और अभी भी इसी बात का हवाला दिया जाता है, जबकि आम्बेडकर से बड़ी एम्स की अस्पताल है। ओपीडी के साथ आईपीडी में भी मरीजों की संख्या लगातार बढ़ने के बाद भी प्रबंधन स्तर पर अस्पताल की क्षमता बढ़ाने के लिए किसी तरह के ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। यहां प्रतिदिन तीन से चार हजार मरीजों की ओपीडी होती है। इसी तरह इमरजेंसी में भी डेढ़ से दो सौ गंभीर स्थिति वाले मरीज आते हैं। इनके हिसाब से लगभग 987 बेड वाला सेटअप छोटा पड़ जाता है। रात को 12 बजे भी आपको आंबेडकर में इलाज मिल जायेगा जबकि एम्स में आपको कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। 

जांच की लंबी वेटिंग :

मरीजों की संख्या अधिक होने की वजह से यहां जांच के लिए भी मरीजों को लंबा इंतजार करना पड़ता है। एमआरआई, सीटी स्कैन, पैट सीटी मशीन जैसी बड़ी जांच तो दूर, सोनोग्राफी, एक्सरे जैसे टेस्ट के लिए महीनेभर तक की वेटिंग होती है। पैथालॉजी टेस्ट की रिपोर्ट के लिए भी बीस से पच्चीस दिन का समय मिलना आम बात हो गई है। इसकी वजह से कई बार मरीज अपनी जांच के लिए निजी अथवा दूसरे सरकारी अस्पताल की मदद लेते हैं। वहीँ अधिकतर लोगों का अनुभव एम्स को लेकर काफी ख़राब बताया जाता है। 

उपलब्धता आधार पर निर्णय :

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एम्स प्रबंधन से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक,  गंभीर हालत में उपचार के लिए आने वाले मरीजों का इलाज किया जाता है। हालत स्थिर होने पर उन्हें संबंधित विभाग भेजा जाता है और वहां बेड की उपलब्धता के आधार पर निर्णय लिया जाता है। एम्स में लगातार मरीजों की संख्या बढ़ रही है और उपलब्ध संसाधनों के माध्यम से उन्हें उपचार प्रदान किया जा रहा है।

अक्सर आते हैं रेफर मरीज :

दूसरी तरफ आंबेडकर अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. संतोष सोनकर और डीके अस्पताल के उपअधीक्षक डॉ. हेमंत शर्मा के मुताबिक एम्स के कई मरीज अक्सर अस्पताल पहुंचते हैं। उनकी स्थिति जैसी भी हो, आगे उपचार के लिए उन्हें यहाँ दाखिल किया जाता है। रेफर होकर आने वाले मरीज कई बार गंभीर हालत में होते हैं और उन्हें गहन उपचार के लिए सतत निगरानी में रखना पड़ता है। जिसे आम्बेडकर अस्पताल के डॉक्टरों द्वारा बड़ी ही जिम्मेदारी से ध्यान देकर बेहतर इलाज किया जाता है। 

एम्स से रेफर मरीज :

महीनाआंबेडकर   डीके
जून  9622
जुलाई  18125
अगस्त15430
सितंबर9430
अक्टूबर  14728
नवंबर  5220