कितना बदला रेल्वे : लालू की रेल के बाद मोदी की रेल, और जनता की पेलम – पेल। क्या अब भी रेलवे घाटे में चल रहा है?

सम्पादकीय : यहाँ हम ना रेलवे की बुराई करने आये है और ना ही मोदी जी की, हम तो बस यही बताने आये है की रेलवे में बीते 20 सालों में कितना बदलाव आया है और आम जनता को कितना फायदा पहुंचा है? तो आइये हम शुरू करते है रेलवे की कमाई से, हम बचपन से सुनते आये है की रेलवे घाटे में चल रही है, स्व. अटल बिहारी जब देश के प्रधानमंत्री थे तो उनके समय में कभी – भी कोई विभाग घाटे में चल रहा है, ऐसी खबर नहीं आई और उनके समय में आम जनता के लिये महंगाई कभी बढ़ी ही नही, 34 रूपये का पेट्रोल उनके शासन में शुरू से अंत तक 34 रुपये ही रहा, कभी बढ़ा नहीं और उनके शासन की तारीफ़ में आप बस इतना जान लीजिये की UPA की पहली सरकार के वित्तमंत्री रहे चिदंबरम ने ही बयान जारी करके कहा था की हम, अटल जी के शुक्रगुजार है, जिन्होंने हमें देश का भरा हुआ खजाना सौंपा है। जिसके रत्ती भर भी दबाव आम जनता पर नहीं आया और पाकिस्तान को भी हमने कारगिल युद्ध में धराशायी कर दिया और इधर परमाणु संपन्न देश भी बना दिया, अब उसी की दूसरी धूरी नरेंद्र मोदी जी के शासन में जनता भयंकर महंगाई और मंदी से त्रस्त है, यहाँ हम किसी की बुरे करने नहीं आये है।

शुरू से सुनते आये है रेलवे घाटे में चल रहा है :

स्व. अटल बिहारी जी के समय ममता बनर्जी रेलमंत्री थी, आगे पाठक खुद भी समझदार है, अब आइये लालू जी के रेलमंत्री रहते रेलवे में क्या हुआ, जब लालू जी रेलमंत्री बने तब उन्होंने भी यही कहा रेलवे घाटे में चल रहा है, और उस समय ख़बरें ऐसी चली की रेलवे लालू जी रेलमंत्री रहते हुये फायदे में आ गया है, आइये जानते है उन्होंने ऐसा क्या किया था, उन्होंने कभी – भी अपने कार्यकाल में यात्री भाड़ा नहीं बढ़ाया, बल्कि उन्होंने उस समय मालगाड़ी के भाड़े को बढ़ाया था, और रेल्वे को फायदे में लाने के लिये उन्होंने ही प्रयोगात्मक तौर पर आपातकालीन टिकटों के नाम पर तत्काल टिकट कोटा शुरू किया था। उनके समय में रेलवे में कुल्हड़ शुरू करके कुम्हारों के रोजगार में वृद्धि की थी, और उस समय रेल्वे में जब भी उत्तर प्रदेश – बिहार में एंट्री करो तो शानदार चाय मिल जाती थी, जिसे यात्री अपने वतन की मिटटी को चूमते हुये चाय पीता था। उस समय ख़बरों में यही चलता था की लालू जी के रेलमंत्री रहते रेलवे फायदे में आ गया है। दूसरी तरफ विरोधी गुट यही कहता था की रेलवे अब भी घाटे में चल रहा है। जबकि मेरे अनुसार उस समय शायद रेलवे फायदे में आ गया था, उस समय संचार के साधन भी इतने नहीं होते थे जितने आज है। हालाँकि उस समय रेलवे पुराने तरीके से ही संचालित होता था, उस समय रेलवे द्वारा यात्री सुविधाओं पर कोई खास ध्यान नहीं दिया गया था।

अब बदलते समय में बीते 9 सालों में रेलवे में क्या हुआ:

मोदी जी के आने के बाद पहले वर्ष धड़ाधड़ रेलवे की सुरक्षा को मजबूत किया गया, ट्विट करते ही अगले स्टेशन पर माँ को बच्चे के लिए दूध मिल जाता था, यात्री की मदद के लिये RPF तुरंत पहुँच जाती थी, ऐसा लगने लगा की रेलवे में बस इच्छा करो और आपकी मनोकामना पूरी हो गई, पुराने डब्बे हटाकर रेलवे में नए डब्बे लगने शुरू हो गये, सफाई व्यवस्था एक नंबर हो गई, देखते ही देखते रेलवे बदल गया, वन्दे भारत और तेजस जैसी ट्रेने पलक झपकते ही अपने स्थानों पर पहुँचने लगी, ऐसी अनेक तब्दीलियाँ रेलवे में हो गई, आम यात्री के लिए हेल्पलाइन नंबर जारी कर दिये, सोचते ही ट्रेन में सफाई, पानी व्यवस्था, ये सब चले बस एक साल।

तेजस और वन्दे भारत के नाम पर अंधाधुंध दाम :

शुरू में तेजस सरकार द्वारा संचालित की गई लेकिन यह सफल नहीं हुई , बाद में इसे IRCTC को दे दिया गया, अब यह IRCTC के भी बस के बाहर है, वन्दे भारत के अंधाधुंध भाड़े के कारण इसमें यात्री रूचि नहीं ले रहे है।

IRCTC से टिकट बुक करने पर अब लगता है इतना चार्ज :

IRCTC से ऑनलाईन टिकट बुक करने पर पहले 10/- और टैक्स मिलाकर 11.80 लगता था, बाद में इसे बढ़ाकर 20/- और GST (22.80/-) कर दिया गया, नोटबंदी के बाद इसे सरकार ने अपनी जेब से वहन किया और नोटबंदी के दो – ढाई साल बाद 15/- और GST मिलाकर 17.70/- कर दिया साथ में पेमेंट गेटवे के नाम पर इसमें अलग से 5/- से 7/- अलग जोड़कर लेना शुरू कर दिया, जो की यात्रियों की संख्या को बिना ध्यान में रखे लिया जाता था। अब इसमें IRCTC का भी पेमेंट गेटवे जुड़ गया है, जबकि शुरू में पेमेंट गेटवे बीच में नहीं होता था और भुगतान सीधा IRCTC के खाते में चला जाता है, यह पेमेंट की सेवा आपके बैंक से पैसा लेकर ऑनलाईन कंपनी तक पैसा पहुँचाने का कार्य करती है, आम तौर पर जैसे हवाला का पैसा जाता है, हालाँकि यह पेमेंट गेटवे वैध होता है, अब इस पेमेंट गेटवे के कारण IRCTC का 15/- और GST मिलाकर 17.70/- चार्ज सामान्य तौर पर लिया जाता है, जबकि पेमेंट गेटवे के नाम पर यह भुगतान की जाने वाली राशि के आधार पर बढ़ जाता है, जिसमें IRCTC का चार्ज मिलाकर आपको एक यात्री पर स्लीपर पर लगभग 50/- का अतिरिक्त भुगतान करना पड़ता और यात्री संख्या ज्यादा होने पर पेमेंट गेटवे का चार्ज बढ़ जाता है, जबकि पहले के अनुसार यह मात्र 20/- और GST (22.80/-) लिया जाता था।

रेलवे पहले भी घाटे में था और अब भी :

नई मोदी सरकार ने यात्री भाड़े को बेतहाशा बढ़ा दिया, बुजुर्गों का छूट भी कोरोना के बाद बंद कर दिया, जो की अभी तक शुरू नहीं हुआ, ट्रेन खाली मिलेगी कहकर 11 साल के बच्चों को जो आधा टिकट में पूरी सीट मिलती थी उसे भी छीन लिया, ना वेटिंग क्लियर हुई और ऊपर से छूट भी छीन ली, और अब सीट छोड़ने पर ही पैसा कम होता है। ऊपर से टिकट पर लिखा हुआ आता है, भारतीय रेल आपसे लागत का मात्र 57% ही वसूल करती है, तो हमारे बाकी पैसे कौन चूका रहा है? जबकि पहले लिखा आता था, आपके भाड़े का बाकी पैसा आम नागरिक वहन करते है, तो मै जानना चाहता हूँ वो – नागरिक कौन है और मै खुद कौन सा VIP हूँ ? ये सोचकर मेरा दिमाग चकरा गया है। किसी न किसी तरीके से रेलवे अब भी घाटे में चल रहा है, तो भाई पूरे नियम वापस करो जब कोई फायदा नहीं हो रहा है तो, कम से कम आम नागरिक (यात्री) जान तो मत लो।क्यों देरी से चल रही है ट्रेने ? : सबसे नीचे जाकर पढ़ें।

मैंने अपनी यात्रा में और अन्य लोगों से जानकारी लेने के बाद क्या देखा :

ट्रेने लगातार देरी से चल रही है, पिछले वर्ष राखी पर बहनों को परेशान होना पड़ा चार माह पहले टिकटें कटवाई थी फिर भी वो भाई को राखी ना बाँध सकी, क्यूंकि ऐन वक्त पर अधिकतर ट्रेने कैंसिल हो गई, अपडेशन के नाम पर साल भर ट्रेने कैंसिल रही, अचानक से ट्रेनों के रूट बदल दिये गये, इस वर्ष गर्मी के सीजन में ट्रेन छूटने के एक घंटे पहले, यात्रियों को मेसेज आता है, आपकी ट्रेन कैंसिल हो गई है, या डाइवर्ट हो गई है, अब ऐन वक्त पर यात्री क्या करे? जिसका फायदा बस मालिकों ने अपना भाड़ा बढ़ाकर उठाया, उसके बाद डाइवर्ट ट्रेनों में TDR फाइल करना पड़ता है, जिसकी जानकारी यात्रियों को नहीं थी और उनके पैसे डूब गये और जिन यात्रियों ने TDR फाइल किया था उनको भी आज तक पैसे नहीं मिले, एजेंट से टिकट बनवाते समय अगर यात्री का मोबाइल नंबर गलत डल जाता है तो टिकट कैंसिल करने पर रिफंड के लिए OTP उसी नंबर पर आती है, और यह OTP 30 दिन के बाद प्रयोग नहीं की जा सकती, जिसको लेकर भी कई यात्रियों के पैसे डूब चूके है जो IRCTC के पास अटके हुये है, वो पैसे ना इधर हो रहे है और ना उधर, कोरोना के बाद से 3 – 4 यात्री किराये में थोड़ी – थोड़ी बढ़ोत्तरी की जा चूकी है, प्रीमियम तत्काल की टिकटों के नाम पर डायनामिक भाड़ा लागू किया जा चूका है, मतलब जैसे – जैसे टिकटें कटेंगी भाड़ा बढता जाता है, मजबूरी में यात्री को कई बार चार गुना भाड़ा चुकाना पड़ता है। मालगाड़ियों से रेलवे की कमाई के चक्कर में यात्री ट्रेनों को रोका जा रहा है, जिसके कारण ट्रेन 4 से 10 घंटे तक लेट हो रही है। कुल मिलाकर प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तौर पर यात्री भाड़े में बेतहाशा वृद्धि हुई है और यात्रियों के पैसे डूबे है।

मैंने अपनी यात्रा के दौरान क्या देखा :

मैंने रायपुर से अमृतसर जाने के लिये समय बचाने के चक्कर में बिलासपुर से तेज गति की ट्रेन हीराकुंड से यात्रा करना पसंद किया, जिसके कारण मुझे रायपुर से बिलासपुर का अतिरिक्त भाड़ा वहन करना पड़ा, और मुझे पता चला हीराकुंड एक्सप्रेस अपने तय समय से 6 घंटे देरी से चल रही है, अब रायपुर से अमृतसर के लिये छ.ग. एक्सप्रेस का समय 44 घंटा है, जबकि हीराकुंड का बिलासपुर से अमृतसर 30 घंटा, लेकिन अमृतसर पहुँचते – पहुँचते ट्रेन 10 घंटे लेट हो गई, पूरे रास्ते में ट्रेन के आधुनिक कोच में खटर – खटर की आवाज से पूरे 40 घंटा मै और अन्य यात्री परेशान रहे, अब मै ये तय नहीं कर पा रहा हूँ की मेरा कोच ख़राब था , नया था या पुराना? जबकि दूसरी ओर इंटरसिटी के पुराने डब्बों में कोई आवाज नहीं थी, रास्ते में रेलवे का कोई हेल्पलाइन नंबर काम नहीं किया, IRCTC की घटिया चाय पीनी पड़ी , क्यूंकि IRCTC के ठेके के कारण बाहर का कोई बी वेंडर अन्दर चाय लेकर नहीं आता था, 15/- का रेल नीर 20/- लेना पड़ा, जिसको लेकर हमने ठेकेदार से बात की, जिसको लेकर उसने कोई संतुष्टि जनक जवाब नहीं दिया, 40 घंटे के सफ़र में ना ही हमारे और अन्य किसी कोच में सफाई हुई, और नाही बाथरूम साफ़ थे, रेलवे की SMS सुविधा से भी कोई मदद नहीं मिली, सुरक्षा के नाम पर वापसी में छ.ग. एक्सप्रेस के डब्बों में 8 लोगों के मोबाइल चार्जर चोरी हो गये और एक महिला का पर्स एक आदमी छिनकर भाग गया। चार्जिंग प्लग में चार्जर ठीक से काम ही नहीं करता था। खैर छोड़ो हमें क्या करना, कौन सा हमको रोज सफ़र करना है।

क्यों देरी से चल रही है ट्रेने ? :

अब अंत में आते है ट्रेनें देरी से क्यूँ चल रही है ? आमतौर पर ट्रेन के लेट होने का कारण इंजीनियरिंग से भी जुड़ा होता है, ट्रैक पर किसी भी तरह का निर्माण कार्य, सिग्नल का काम या ओएचई यानी ओवर हेड वायर के काम की वजह से भी ट्रेन लेट होती है, वहीं 21 फ़ीसदी ट्रेनें एसेट्स फ्लेयर यानी रेलवे का कोई सिस्टम फेल हो जाने से लेट होती हैं।

अब जितना मैंने सालभर से देखा , समझा और जाना उससे पता चला की सरकार कहती है, रेल्वे लाइनों का सुधार , बदलाव और विकास कार्य (Updation) चल रहा है, इसलिये ट्रेनें देरी से चल रही है, तो पिछले वर्ष राखी के त्यौहार के समय इस कार्य को आगे – पीछे किया जा सकता था, जब बहुत साड़ी ट्रेनें रद्द कर दी गई थी। अब असली बात ये है की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वन्दे भारत ट्रेन को प्रमोट करने के ;लिये उसे भारत में तीव्र गति से चलाया जा रहा है और उसे समय पर पहुँचाने के लिये अन्य ट्रेनों को रोक दिया जाता है, दूसरा जैसे की मैंने पहले बताया सरकार घाटे का रोना रोटी है और उसे माल ढुलाई से ज्यादा कमाई है, इसलिये मालगाड़ी की आवाजाही बढ़ाने के लिये भी यात्री ट्रेनों को रोका जा रहा है।